महासमुंद। पंचायत चुनाव में रसूखदारों के इशारे पर वोट न देना अब ग्रामीणों की जान पर भारी पड़ रहा है। गांव की चौपालों में ऐसे फरमान सुनाए जा रहे हैं, जो लोकतंत्र की मूल भावना को तार-तार कर रहे हैं। ताजा मामला बागबाहरा ब्लॉक के ग्राम पंचायत चिंगरिया के आश्रित गांव बाम्हनसरा से सामने आया है। यहां एक ग्रामीण ने पंचायत द्वारा लगाए गए भारी जुर्माने से तंग आकर आत्महत्या की कोशिश कर ली। ग्रामीण हुलस साहू (55) ने मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर जहर पी लिया। उनकी पत्नी सेतकुमारी के अनुसार, पंचायत ने उनके परिवार पर चुनाव में एक प्रत्याशी के पक्ष में वोट न देने का आरोप लगाते हुए 50 हजार रुपए का जुर्माना ठोका था। जुर्माना नहीं भरने पर गांव से निकालने की धमकी दी गई। इस अन्याय और सामाजिक बहिष्कार के डर से हुलस साहू टूट गए और उन्होंने रविवार, 2 मार्च को कीटनाशक पी लिया।
जानकारी के मुताबिक 20 फरवरी को हुए पंचायत चुनाव में हुलस साहू और उनके परिवार पर एक विशेष प्रत्याशी के पक्ष में वोट न देने का आरोप लगाया गया। चुनाव परिणाम के बाद रात करीब 9 बजे कुछ ग्रामीण जबरन उनके घर पहुंचे, उन्हें उठाकर पंचायत में ले गए और भरी सभा में अपमानित किया। पंचायत ने फरमान सुनाया कि हुलस साहू को 50 हजार रुपए गांव फंड में जमा करने होंगे, अन्यथा उन्हें गांव छोड़ना पड़ेगा।
पुलिस को जानकारी, लेकिन नहीं ले रही संज्ञान
हुलस साहू ने बताया कि गांव के गेंदलाल पटेल, हेमेत पटेल, रेखन साहू और ब्यास नारायण चंद्राकर समेत कई ग्रामीणों ने पंचायत में गाली-गलौज की, धमकी दी और मारपीट करने लगे। इस घटनाक्रम से मानसिक रूप से टूट चुके हुलस साहू ने दो दिन बाद जहर पी लिया। डायल 112 की मदद से उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने पुलिस को जुर्माना और उत्पीड़न की पूरी जानकारी दी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पुलिस को घटना की जानकारी होने के बावजूद अब तक FIR दर्ज नहीं की गई है। पीड़ित परिवार का कहना है कि पुलिस दो दिन बाद भी उनसे मिलने नहीं आई, जिससे वे खुद पुलिस थाने जाकर शिकायत दर्ज कराने की सोच रहे हैं।
गांव में एक और परिवार पर 50 हजार का जुर्माना
यह अकेला मामला नहीं है। गांव के ही चिंताराम पिता रामलाल ने बताया कि उनकी पत्नी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं और ग्रामीणों ने उनके परिवार पर भी चुनाव में वोट नहीं देने का आरोप लगाया है। पंचायत ने उन पर भी 50 हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया। यह घटना बताती है कि पंचायत चुनाव के बाद ग्रामीण राजनीति कितनी जहरीली हो गई है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी को भी अपनी मर्जी से मतदान करने का अधिकार है, लेकिन अब गांवों में दबंगों की पंचायतें मनमाने फैसले सुना रही हैं। वोट न देने पर जुर्माना ठोका जा रहा है, धमकाया जा रहा है, और पुलिस भी मूकदर्शक बनी हुई है।