नई दिल्ली. महिलाओं की खतरनाक स्थिति को लेकर जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सिरे से नकार दिया है। केंद्रीय मंत्रालय की ओर से पीआईबी ने इसे लेकर बयान जारी किया है। बताया गया कि यह घोषणा किसी रिपोर्ट या आंकडों पर नहीं बल्कि एक जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है। यह रिपोर्ट केवल भारत की छवि को धूमिल करने जैसा है। यह प्रयास महिलाओं के पक्ष में हो रहे वास्तविक प्रगतियों से ध्यान हटाने जैसा है। जबकि भारतीय महिलाओं का जीवन बेहतर हुआ है। विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारतीय महिलाएं बेहतर स्थिति में हैं।
यह था सर्वेक्षण
थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन ने हाल में एक जनमत सर्वेक्षण किया है-
- जिसका शीर्षक है-महिलाओं के लिए विश्व के सबसे खतरनाक देश 2018।
प्रक्रिया ही दोषपूूर्ण
पीआईबी ने कहा है कि इस नतीजे तक पहुंचने के लिए रायटर्स ने एक दोषपूर्ण प्रक्रिया का उपयोग किया है।
- रैकिंग, अवधारणा आधारित है। यह मात्र 6 प्रश्नों के जवाब पर आधारित है।
- ये परिणाम आंकडों के आधार पर नहीं निकाले गये हैं। ये पूर्णतया विचारों पर आधारित है।
- इस सर्वेक्षण में मात्र 548 लोगों को शामिल किया गया है। रायटर्स के अनुसार ये व्यक्ति महिला संबंधी मामलों के विशेषज्ञ हैं। इन व्यक्तियों के पद, संबंधित देश, अकादमिक योग्यता व विशेषज्ञता आदि के संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। ये सभी चीजें सर्वेक्षण की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है।
- संगठन द्वारा प्रक्रिया संबंधी दी गयी जानकारी के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल कुछ लोग नीति निर्माता है।
एक समान छह प्रश्न सभी देशों पर नहीं हो सकते हैं लागू
- सर्वेक्षण में पूछे गये 6 प्रश्न एक समान रूप से सभी देशों पर लागू नहीं किये जा सकते।
- जैसे विभिन्न देशों में बाल विवाह की उम्र सीमा अलग-अलग है। इसके अलावा महिला के जननांगों की विकृति, दोषी व्यक्ति को पत्थर मारना आदि प्रथाएं भारत में नहीं हैं।
देश में महिलाओं की स्थिति बेहतर
- सरकार मीडिया, शोध कर्ताओं तथा स्वयं सेवी संगठनों के साथ खुले रूप से विचारों का आदान-प्रदान करती है।
- इससे महिलाओं को बहस में जुड़ने का अवसर प्राप्त होता है।
- आम लोग और स्वतंत्र मीडिया, महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा पर खुले रूप से चर्चा कर सकती हैं।
- प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु दर में 2013 की तुलना में 22 प्रतिशत की कमी आयी है।
- इसके अलावा जन्म के समय लिंग अनुपात भी बेहतर हुआ है। इससे यह भी पता चलता है कि लिंग आधारित गर्भपात की संख्या में भी कमी आयी है।
- आर्थिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। महिलाओं की आजीविका के लिए लगभग 45.6 लाख स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया गया है।
- इसके लिए 2 हजार करोड रुपये की धनराशि उपलब्ध कराई गयी है।
- बालिकाओं के वित्तीय समावेश के लिए सुकन्या समृद्धि योजना के तहत 1.26 करोड़ बैंक खाते खोले गये हैं।
- कुल जनधन खातों में से आधे महिलाओं के हैं। प्राथमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर लड़के और लड़कियों के नामांकनों की संख्या समान है।
- इस प्रकार यह कहना गलत है कि भारत ने महिलाओं को आर्थिक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं।
- राज्य सरकारें पुलिस बल में महिलाओं की संख्या को 33 प्रतिशत तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
- महिलाओं की सहायता के लिए 193 वनस्टॉप केन्द्र तथा 31 राज्यों में हेल्पलाइन की शुरूआत की गई है।