पूरी दुनिया में काली मिट्टी के बर्तन के लिए मशहूर आजमगढ़ के निजामाबाद कस्बे में इस बार कुछ खास रौनक है।
इस बार दीये की विशेष मांग अमेरिका से आई है।
दरअसल, कोरोना के चलते चाइनीज झालरों से
इस बार अपने ही देश में नहीं बल्कि अमेरिका जैसे देश ने भी दूरी बना ली है।
अब अमेरिका के भारतवंशियों ने भी इस बार की दीपावली के
लिए चाइनीज झालरों को ना और मिट्टी के दीयों को हां कहना शुरू कर दिया है।
तभी तो सात समंदर पार हिन्दुस्तान के आजमगढ के
छोटे से कस्बे में भी इसका असर साफ नजर आ रहा है।
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जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर इस कस्बे में दिन रात दो सौ कलाकार मिट्टी के दीये बनाने में जुटे हैं। बिजली से चलने वाले इन कालाकारों के चाक अब बिजली जाने पर ही कुछ घंटों के लिए बंद हो पा रहे हैं। हर कलाकार एक दिन में छह हजार से अधिक दीये बना रहा है।
पिछले बीस दिनों से सप्लाई जारी है। अब तक 50 लाख से अधिक दीयों की सप्लाई की जा चुकी है। इनमें से सत्तर फीसदी दीये महाराष्ट्र भेजे गए और उसमें भी इस बार तीस फीसदी दूसरे देशों में भेजे गए।
कलाकारों की मानें तो दस लाख से अधिक दीये सिर्फ अमेरिका भेजे गए। कलाकार संजय यादव बीस दिनों में 25 से अधिक ट्रक दीये मुंबई, पूना भेज चुके हैं। कलाकार बैजनाथ प्रजापति कहते हैं कि दीपावली के लिए हमारी वर्ष भर तैयारी चलती रहती है। तब जाकर कहीं हम लोग इतनी बड़ी सप्लाई पूरी कर पाते हैं। इस बार बाहर की डिमांड के पीछे की वजह कोरोना है।
दीयों की एक दर्जन से अधिक वेरायटी
कलाकार संदीप प्रजापति कहते हैं कि हमारा सारा माल मुंबई के महालक्ष्मी जाता है। वहां विशेष पैकेजिंग के बाद यह माल अमेरिका व दुबई जाता है। इस बार कोरोना के चलते बाहर की मांग ज्यादा है।
बताया कि हमारे यहां एक दर्जन से अधिक डिजाइनर दीये बनते हैं। उसमें खासतौर पर चांदनी दीया, डेजी दीया, स्टैंड दीया, थाली दीया, लक्ष्मी गणेश दीया, नारियल दीया, रिंग दीया, पांच पंथी दीया आदि की मांग बाहर ज्यादा रहती है।
नेपाल में पूजे जाएंगे मिर्जापुर के गणेश-लक्ष्मी
चुनार में तैयार की गई गणेश-लक्ष्मी की पूजा इस वर्ष नेपाल में होगी। वहां व्यापारी चुनार से सीधे गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति मांगवा रहे हैं। पूर्व में बिहार के मधुबनी जिले से नेपाल के व्यापारी गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति मंगवाते थे,
लेकिन काफी महंगा होने के कारण व्यापारियों को
चुनार की तरफ रुख किया है।
पाटरी उद्योग से जुड़े व्यापारी अवधेश वर्मा की मानें तो
इस वर्ष लगभग 15 से 20 लाख मूर्तियों का आर्डर नेपाल से विभिन्न व्यापारियों को मिला है।
दीपावली और धनतेरस पर इन मूर्तियों की डिमांड दिल्ली-मुम्बई,
झारखंड, उड़ीसा और कोलकाता के साथ ही अब नेपाल के प्रमुख शहरों में हो गई है।
इससे कोराना से मंदी की दौर में गुजर रहे पाटरी उद्योग के व्यवसायियों के लिए संजीवनी साबित हो रही है।
गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति के साथ ही पाटरी उद्योग में तैयार
किए जाने वाले चीनी मिट्टी के कप-प्लेट, जार व फूलदान भी नेपाल भेजा जा रहा है।
जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त वीके चौधरी कहते हैं कि
पॉटरी उद्योग के व्यापक प्रचार-प्रसार का ही नतीजा है कि अब चुनार में उत्पादित मूर्ति नेपाल तक पहुंच रही है।
इससे इस उद्योग को पुनर्जीवित करने में काफी मदद मिलेगी।