काठमांडू। नेपाल में राजनीतिक संकट और तख्तापलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पहली बार चुप्पी तोड़ी है। प्रदर्शकारियों ने उनके घर और संसद भवन को आग के हवाले कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया और तब तक उन्हें कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करने का काम सौंपा है।
इस बीच, ओली ने एक ओपन लेटर लिखकर नेपाल के Gen-Z को संबोधित किया है। इस पत्र में उन्होंने अपनी लोकेशन का खुलासा किया और भारत विरोधी मुद्दों को दोहराया।
पत्र में क्या लिखा?
पत्र में ओली ने लिखा कि वे वर्तमान समय में शिवपुरी में नेपाल सेना की सुरक्षा में एक अलग-थलग क्षेत्र में रह रहे हैं। उन्होंने अपने पत्र में सीमा विवाद का जिक्र करते हुए कहा:
“लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के हैं। अगर मैंने इस मुद्दे को न उठाया होता, तो मुझे कई फायदे मिल सकते थे।”
उन्होंने बच्चों और युवाओं से जुड़े भावनात्मक अनुभव भी साझा किए और कहा कि बच्चों की मासूम हंसी उन्हें जीवन में सबसे ज्यादा सुकून देती है।
“मैं पिता नहीं बन पाया”
पत्र में ओली ने अपने निजी दर्द का भी जिक्र किया। उन्होंने लिखा कि शासन परिवर्तन की लड़ाइयों के दौरान सरकारी अत्याचारों की वजह से वे पिता नहीं बन पाए। उन्होंने कहा कि उनके बच्चों की मौत पुलिस की गोलियों से हुई और यह दर्द आज भी ताजा है।
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“बच्चों ने नहीं की हिंसा”
नेपाल में हाल के प्रदर्शनों में हुई हिंसा पर ओली ने कहा कि उन्हें भरोसा नहीं है कि ये काम बच्चों ने किया। उन्होंने इसे गहरी साजिश का हिस्सा बताया।
बॉर्डर और भगवान राम पर विवाद दोहराया
अपने पत्र में ओली ने फिर सीमा विवाद और भगवान राम के जन्मस्थान को लेकर विवादित बयान दोहराया। उन्होंने कहा कि –
भगवान राम नेपाल में जन्मे थे, भारत में नहीं।
लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल का हिस्सा हैं।
उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों को नेपाल में रजिस्टर होने के लिए मजबूर किया।
भारत विरोधी तेवर बरकरार
ओली ने अपने पत्र में साफ कहा कि उनके लिए पद और प्रतिष्ठा मायने नहीं रखते, बल्कि व्यवस्था और नेपाल की संप्रभुता की रक्षा सबसे अहम है। उन्होंने दावा किया कि उनकी जिद के कारण ही नेपाल ने नया नक्शा संयुक्त राष्ट्र तक भेजा था।























