विजय शर्मा
पूर्व राम हंस दास महन्त लंबे अरसे बाद वृन्दावन से पधारे। स्वागत सत्कार पश्चात महंत जी ने मंदिर दर्शन के लिए आग्रह किया। मैने हामी भरते हुए कहा आरती से पहले पहुंच ही रहा हूं। कुछ ज्ञान दर्शन, रस्मों-रिवाज पर चर्चा छिड़ी लम्बी वार्तालाप ने संस्कृति व प्रभाव पर अच्छा विचार मन्थन हुआ।
पूजा आरती के बाद प्रसाद ग्रहण कर आने लगा …
- तो महंत पुजारी जी ने आग्रह कर भोग पाने के लिए विवश किया।
- सुशीला को आदेशात्मक लहजे में कहा विजय बाबु को दूध मिश्री दे।
- दाल भात सब्जी के साथ दूध भात का अपना अलग ही महत्व है।
- अब वे दिन गए जब दूध भात खुब खाया करते थे। बालपन एका-एक सामने आ गई।
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- पुजारी जी मुख्य द्वार से वापस आए और संवेदना भरी खबर दी… बिन ब्याही रेशमा मां बनने वाली है।
- घोर संकट है, पड़ोस में सिर्फ मंदिर और कन्या आश्रम है।
- आश्रम की अधीक्षिका ने मूंह फेर ली दरवाजा बंद कर सो गई, उसके चिरपरिचित को पुजारी जी ने संदेशा भेजा।
- पर किसी ने ध्यान नही दिया, गिने चुने लोगों ने कई बहाने किए।
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- रेशमा की करूणामयी पुकार ने पुजारी जी को विचलित कर दिया।
- वैणवी भक्त पुजारी के मन में दया करूणा कब तक दबा रहता।
- आखिर मदद के लिए रेशमा के आग्रह पर किराए की गाड़ी खोजने लगे, लेकिन कहीं गाड़ी नही मिली।
- मैने भी अनमने ढ़ग से मदद की सोची, दो-तीन जगहों पर फोन में बात किया, लेकिन कोई लाभ नही मिला।
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- मैने सोचा बिन ब्याही मां बनना कितना बड़ा कलंक है। प्रसव की घड़ी में साथ देने वाला कोई नही है।
- घर में कराह रही है।
- एक जीरो बल्व टिमटिम करते प्रकाशमान है जिससे चेहरा भी ठीक से दिखाई नही दे रहा है।
- मानो प्रमिला कराहती किन्तु मुक अवस्था कह रही थी कि आज इसी घर के अन्दर या मां बनुंगी या मर जाऊंगी।
- शनै-शनैः क्षण के बढ़ते प्रभाव ने मृत्यु को सन्निकट करते देख रही थी।
- अन्ततोगत्वा पुजारी से प्राण रक्षा की याचना ने ब्राह्णत्व को जागृत कर दिया।
- मैने भी कुछ पहलुओं पर विचार किया और तय कर लिए जो होगा……… इसे बचाना ही है।
- पाप-पुण्य जाति-धर्म क्या? मानवता से बड़ा पाप तो तब होगा जब हम जरूरत मंदो की उपेक्षा करेगें।
पाप कैसे
- दुःख की इस घड़ी में मृत्यु के लिए छोड़ देना महापाप होगा।
- कुंवारी मां समाज की दृटि में हेय जरूर है पर जिस मां ने 9 माह गर्भाधरण की वह तो निछल प्रेम है फिर पाप कैसे?
- पाप तो वो है जिसने अपने अंश का तिरस्कार किया।
- एक नही दो जानो की परवाह नही की। कुछ करना ही होगा कर्मण्य राधिकास्ति……………………का स्मरण करते हुए।
- अंधेरी रात में बिना लाईट के उबड़-खाबड़ पथ को पार करते हुए।
- वैय एवं ग्राम प्रमुख को पहुंच कर इस सम्बंध में जानकारी दी
- एवं सुरक्षा के लिए विप्र ने निवेदन किया फिर उन्होने नेक सलाह दी- सीधे चले जाइए
- गुहा सिस्टर के पास वेन मिले तो श्रीवास के पास वे इन्तजाम कर देंगे ऐसे वे लोग भी क्या करेंगे बागबाहरा ही भेजेगे।
एम्बुलेंस तो खड़ी है अनुमति व गाड़ी की चाबी डाक्टर…
- से ले लेना खैर…डाक्टर साहब की दोहरी जिम्मेदारी है वे तो बागबाहरा में ही मिलेंगे।
- शायद गाड़ी में डीजन हो। हमारी तो कोई चलती नही इसके बाद भी जरूरत पड़े तो मै आधी रात को तैयार हूं।
- बिना लाइट की टी व्ही एस में आहिस्ता-आहिस्ता सरकारी अस्पताल पहुचे, ताला लटक रहा था।
- पुजारी जी सिस्टर को बुलाने गए।
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अस्पताल की दशा- दस बिस्तर का अस्पताल (10 लाख की बिल्डिंग में 15 लाख की एम्बुलेंस
- गुहा सिस्टर- मै अभी कुलिया से केस निपटा कर आयी हू लोग गलत-सलत जगह हाथ डलवाते है और मेंरे पास ले आते है।
- ऐसे आज मेरी भी ड्यूटी नही है।
- वो…..छोकरी लोग आती है उन्ही का काम है।
- वो बोली है न हम देख लेंगे करके, हां…हां…ये…..लो…….अस्पताल की चाबी निपटा लो अपना को…………..कहां-कहां से ले
- आते है। कुछ कहना भी तो पाप है बाबा…………………………।
पुजारी- महाराज जी बुरे फंसे। क्या करे?
- मैने कहा- देखा जायेगा पहले भर्ती तो करे
- पुजारी जी जरा डुगडुगी को धक्का मारेगें क्या (गाड़ी स्टार्ट होती है)
मंदिर में पहुंच कर महंत जी से।
- पुजारी- महंत जी मेरे को प्रमिला का कट सहा नही जाता अस्पताल तक पहुंचा दिया हूं?
- हम ठहरे वैणवी मानव सेवा हमारा धर्म है,जाति धर्म तो ओछी बात है
- महंत- हां….हां……तू तो ठेकेदार है, कर मानव धरम। कण्डील जला ले हवा धूं..धूं कर रही है।
- जा मुहल्ले मे कोई मिले न मिले मुल्ला एकाध जरूर मिल जावेगा।
- आज कल पुजारी महंत को कौन पुछता है? जो आवाज देने से दौडे आयेगें।
- इसकी सेवा तो नंगे का भाई देरवों जैसी है।
- पुजारी- गांव में जिसे कहते है उसकी तबीयत बिगड़ने लगती है।
- लगता है आस-पास से मानव सेवी बुलाना पड़ेगा।
महंत- जनजागरण की दवा भी खिलानी पड़ेगी।
- क्या बताये अपनी औाधालय की पकड़ भी तो कमजोर पड़ गई है।
- एकाध मरीज आ गये जो बडे भाग्य! देखो न आज विजय बाबु जैसे मरीज की कैसी सेवा ले रहे है।
- पुजारी जी- अब जाऊँ महंत जी उसकी सेवा में।
- महंत जी- जा…ना…अब क्या घंटा धाल रहा है।
- (पुजारी और मै जल्दी प्रमिला के पास जाते है)
- रेशमा- बस पुजारी-माँ…ओ….हे….राम……….मै क्या करूं भगवान।
- पुजारी- तू क्या करेगी आदमी बना के रखी नही, कोई औरत प्राणी साथ रहे तो और बात है।
- फिर भी करना तो हम ही को है। (पुुजारी गाड़ी को धक्का मारता है) चल महाराज जी की गाड़ी में बैठ जा अस्पताल का द्वार खुला है।
- मैने कहा आराम से बैठ आहिस्ता-आहिस्ता गाड़ी चलने लगी।
- ओ….हे….राम……………………………..
- अस्पताल का दृश्य – दरवाजा खुला है नर्स का पता नही राम देव बाबा चोंगी फुक रहे थे।
- शुक्ला जी अपने पुत्र एवं जोसफ भाई के साथ आते है।
- शुक्ला जी – ओफ.. बड़ी तकलीफ है? कोई लेडिज बैगरह नही है क्या?
- मैने कहा- हमही माता-पिता है जो भी सोचो वही हमी है।
- जोसफ – अच्छा-अच्छा ये बात है, हम भी साथ है, कोई बात नही ऑल राइट।
सिस्टर क्या बोल रही है?
- मैने कहा- बड़ी सिस्टर थकी है एक केा निपट गया, जच्चां बच गई मै थक चुकी हुं कहती है।
- हां जोसफ भाई गांव में प्रमिला का वायरस यही से फैला है जो सुनता है बुखार पड़ जाता है,
- फिर यहां तो उसका तीव्र असर है।
- जोसफ जी- अरे ये भी कोई बात है! जाओ टानी सिस्टर को बुला के लाओ।
- मैने खटारी को धक्का देकर कहा अभी लाता हूं ।
- टानी सिस्टर को लम्बी हार्न एवं आवाज के साथ उठाता हूं।
रूकना बाबा ताला लगा के आती हूं।
टानी सिस्टर- (अस्पताल म)हां- हाँ नाम, उम्र पति का नाम
रेशमा- बताती है उम्र 40 मालक गोपाल जाने
सिस्टर – साथ में जिम्मेदार आदमी कौन है?
रेशमा- महराज और पुजारी।
पुजारी- हरे कृण……….हरे कृण………।
- बड़ी सिस्टर-(आचर्य से) बाप रे चार इंच अन्दर सर ऊपर काफी कम्प्लीकेट, 12 तो बज ही जायेगे।
- बाकी नार्मल (मुंह चिपकाते हुये) क्या उम्र 40 साल ना बाबा ना सिरियस-केा बागबाहरा रिफर करना पड़ेगा।
टानी सिस्टर- रिफर कार्ड बनाते हुये पुजारी जी को थमाते है। - बागबाहरा ले जाओ वहां सब ठीक हो जायेगा।
- पुजारी – मेरी तरफ कातर भाव से देखते हुए………महराज जी अब………..क्या होगा?
- मैने कहा- वही होगा जो मंजुरे खुदा होगा। शुक्ला जी गाड़ी-वाड़ी का जुगाड़ है क्या?
- शुक्ला जी- देखते है एकाध वैन! जोसफ भाई को इसारा करते है।
- ( जोसफ भाई मुसकिल से एक खटारी वैन लाते हैं।)
- मैने कहा- क्या बात है शुक्ला जी 10 लाख की अस्पताल में 15 लाख की एम्बुलेंस।
- उसमें भी ड्राइवर फुल, गाड़ी में डीजल नही।
- शुक्ला जी- हाँ यही से स्वराज शुरू होती है और डीजल पे खत्म!
- रेशमा – आह………..उह………………..मां….रे………हे….राम………………..
- पुजारी जी एक हाथ मे झोला व दूसरे में रेश्कमा थामे वैन तक लाते है।
- शुक्ला जी- क्यो भाई हमें भी जाना पडे़गा क्या?
- महाराज- (अन्दर से सहमते हुए।) भईया आप लोगो का पहचान ऊपर तक है। काम फटाफट हो जायेगा। हम ठहरे गेजवा। डाक्टर
- नर्स को आलय से निकलते पेोव पट जाएगी।(मन में बुदबुदाते हुए भगवान ही सहारा है)
शुक्ला जी- क्या बात करते है भईया, ऐसी बात है तो हम भी साथ चलते है। क्यो… जोसफ भाई।
जोसफ जी- हां….हां…. क्यो नही, हम कब काम आएंगे।
(रेशमा, पुजारी महाराज, शुक्ला जी एवं जोसफ वैन में बैठते है।)
रेशमा- आह………..उह………………..मां….रे………हे….राम………………..
- बड़ी सिस्टर- थोड़ी देर की बात है।
- गाड़ी जब गुचकुले खायेगी तो बच्चा पोजिसन में आ जायेगा बडे़ अस्पताल जाते ही बच्चा हो जायेगी।
- बड़े अस्पताल वालों को यही तो फायदा है मेहनत करे हम और नाम कमाये वो।
- पुजारी जी- ऐसी बात है तो दो चार किलोमीटर घुमा कर फिर वापस ले जाते है।
- हम भी क्यो आफत मोल ले।
बड़ी सिस्टर- न….न….न…. पुजारी, महाराज दुसरे की बला क्यो मोल लू। - यहां डाक्टर सुविधा तो है नही। आप लोग जल्दी करिये कही रास्ते में ही न फदक जाए।
पुजारी जी- ओम नमो: नारायण! ड्राइवर-आहिस्ता, पर जल्दी चलाना, मंजिल दस किलोमीटर दूर है।
(वैन आहिस्ता किन्तु तेज गति से चलती है उचकोले से प्रसव वेदना तीव्र हो जाती है। प्रसुति के साथ चार महापुरूषों की हवाईयां उड़ने लगती है)।
रेशमा – आह…. उफ….. बाप रे….बांचा लो…..मां…..ओ……
पुजारी……… ओ……… पुजारी………….
महाराज………… ओ………… महाराज………
डाक्टर…………. ओ……. डाक्टर……..
(सभी निःशब्द, आवाज है तो सिर्फ चिखने चिल्लाने की )शुक्ला जी अपने हाथों से रेशमा सिर सहला रहे थे। महराज बाहे पकड़ के थामे थे। पुजारी जी परिस्थिति को सम्हालने सतर्क बैठे थे। जोसफ जी का ध्यान हुचकुले रोड पर केन्द्रीत है।
पुजारी जी- (अचानक) हरे कृण… हरे कृण.. बोल वही कटो को दूर करेंगे।
हम कर भी क्या सकते हैं।
हे परमात्मा वासुदेव गोविन्दाय् नमः………. वैन अर्ध रात्रि में हिचकोले खाते रात्रि को चिरते हुये अस्पताल के मुख्य द्वार पर पहुंची सबने मध्य रात्रि की मन भर सास ली कर्मचारी ड्यूटी मे तैनात थे। बारी-बारी टपकते गये महिला चिकित्सक आंख मलते दौड़ती आयी प्रसुति कक्ष में जांच की।
नर्सो ने डाक्टर की जानकारी दी, केा कोमाखान से आया है। वही चकल्लस वाला, कौन अपनो से बला मोल ले। यहां भी वायरस फैल चुका था।
डाक्टरनी जांच की फिर वही चार इंच अन्दर, सिर ऊपर, पैर नीचे, उम्र 40 र्वा जिम्मेदारी गोपाल जी की। कोई भगवान भी कभी गारंटी लेता है अदालत में? चिर-फाड़ लगेगी बड़े डाक्टर को बुलाओ।
स्टाफ ने एक स्वर में कहा…
बडे डाक्टर को बुलाओ! शुक्ला, जोसफ व महाराज अन्तर आत्मा की भय को जोक्स सुना-सुना कर ठहाके लगा रहे थे भुली-विसरी यादो ने मन को आत्मसात किया पुजारी जी कभी प्रसूति के रितेदार भंगी को उठाते, कभी इधर-उधर विकेन्द्रित मुद्रा लिए छटपटा रहे थे सबने हंसाने का प्रयास किया।
किन्तु पुजारी की दाा इतनी पतली थी कि मुस्कुराने का औचित्य ही नही समझा। ड्राइवर ऊॅघता हुआ सो गया। खर्राटे भरने की आवाज ने औरो में ईया पैदा कर दी। निंद खुली तो ड्राइवर ने पुछा इसे तकलीफ क्या है?
तभी डाक्टर का संदेश वाहक आया….
उन्होने बताया कि डाक्टर के कान में किडे़ घुस गये हैं जिससे वे परेशान है, उनकी दाई उस प्रसुती से भी ज्यादा विचलित कर रही थी। आते ही उन्होने जोसफ को मसखरी अंदाज में डांटा तुम लोग नही सुधरोगे। मैने तो पहले ही कहा था, प्रमिला तुम बड़े हांस्पिटल में चल देना पर वेा…….आदत कहां सुधरेगा।
जल्दी मिशन हास्पिटल खरीयार रोड ले जावे आपरेशन द्वारा बच्चा निकाल देंगे
डाक्टर कंझाते हुये अपने सहायक से कान के किड़े निकलवाने लगे। बड़ी मसक्कत के बाद बड़ा सा गोला कनघऊॅआ निकला। हमने प्रमिला को बेन मे बैठाये डाक्टर को राहत की सांस लेते मन भर देख रहे थे।
कई प्रकार के विचार मन मे ज्वार भांठे की तरह उठ रहे थे। मैने पुजारी को अलग से बुला के पुछा क्या करे? मेरा तो कुछ समझ में नही आ रहा था। यदि रास्ते में कुछ हो गया तो क्या करेगे रेशमा को तो सारी दुनिया मारने की प्रतिक्षा कर रही थी। हमी चार भद्र पुरूष जुगाड़ में लगे थे या फंसे थे।
समझ में नही आ रहा था। मन में भय था।
राज छोड़ बेराज जा रहे है। फंसे तो बुरे हाल होगे प्रतिठा-पुजारी एवं महराज की लगी है। भगवान ने भी इन चारो महाराजो को गांव भर में ढ़ुढ कर भेजा। वा… री…. माया, कभी धुप कभी छाया। इसी उहा फोह में शुक्ला जी से मैने कहा देा भली परदेा
बेगाना। यही ठीक है चलो चले। शुक्ला एवं जोसफ भाई ने धीर बंधाते हुये खरियार रोड चलने की ही बात की फिर हिम्मत काम आई। घुप अंधेरी रात रोहिणी नक्षत्र कृण जन्म की याद दिला रहा था संयोग आज भी रोहणी नक्षत्र है। हल्की बारिस की फुहार बिजली की चमक आद्र हवा मन को दबाये जा रही थी।
प्रमिला की प्रसव वेदना अत्यन्त करूण हृदय को हिलोरे दे रही थी
आह…उह…हे…राम…अब नही बचुंगी बचा दो डाक्टर… बचा लो महराज… बचा लो… की करूण भरी ध्वनि ने मौनी मुख को कुठित कर दिया जबडे़ दर्द से किन-किना रहे थे। फिर भी कभी धैर्य बांधते यहां तक फलांग भी भारी पड़ रहे थे। जर्जर सड़क धक्का मार बैन के ऊचे -ऊचे हिचकोले मानो घुंसा मार रहे थे।
कभी दिल तसल्ली के लिए गोविन्द पाठ तो नमो नारायण राधे-राधे…
वासुदेवाय, जय भगवान, जय खल्लारी, जय चण्डी, महामाया, घर-डोगर देवी देवता आज रक्षा करो ’’भक्तो की लाज रखो’’ कभी भजन तो मन रूदन अनायास प्रस्फुटित हो रहे थे। इसी बीच हल्की सी हिच्की और कै ने दस्तक दी मन विचलित हो उठा। हे परमात्मा! अब तेरा ही सहारा! के साथ अस्पताल पहुंचे।
कुछ ही देर में रेशमा पसुुति कक्ष…
में दाखिल हुई जी मे जान आई। समय काफी करीब था। नर्सो ने सुति वस्त्र मांगी जोसफ जी ने रूमाल लहराया, पुजारी जी ने अपना फगवा गमछा कुछ कपड़े फाड़े। प्रसुति गृह के समक्ष उपस्थित 10-15 छत्तीसगढ़नीन ग्राम्य ने पुछा साथ में कोई बाई-वाइ नही है क्या? पर हमारे पास कुछ उत्तर तो था…. नही। हमने कह दिया कल तक आएंगे।
फिर क्या था पराए अपने हो गये। इस सहानुभुति ने कई मां बहन और भाभी क्षण भर में भर दिये। तभी 3.45 बजे प्रातः बच्चे की आवाज ने मर्दानगी की आहट दी सबने एक स्वर में कहा लड़का आया। आधे घंटे बाद नर्स ने बच्चे हमारे हवाले कर दी फिर क्या था, हम दादा तो बन ही गये थे। सभी महिलाओं ने आत्मीयता से जच्चे-बच्चें की सेवा मे जूट गई किसी ने अपना नया कम्बल दिया तो किसी ने चादर बुखार और कपकपी ने प्रमिला को कंपा दी।
तभी प्रमिला हमारे सम्मुख हाथ जोड़ी कातर मुद्रा मे आगे बढ़ रही थी, स्थिति ने रात्रि के सारे कटो को एक ही झटके में खुशी में बदल दी उसकी अनुभुति का वर्णन अब शब्दो में बंध नही सकता।
पुजारी जी ने फौरन महंत जी को घंटी घुमाई महंत जी हैलो…. के साथ ही उचक कर कहा- अरे… वे…….दा……सुशीला-शुक्ला जी का घंटा बजा दे! अब पौ बारा हो गया। वापसी मे रात की बात याद कर रहे थे।
वह कैसी रात थी, जब बीज प्रस्फुटित हुआ। इस एक ही रोज ने ब्राह्मणों के ब्राह्मणत्व को ललकारा। पुजारी को मानवता का पुजारी बनाया। जोसफ को संत बना दिया। आज महंत जी के आंखो का चस्मा उतर गया है। डाक्टर के कान अब ठीक-ठाक सुनाई दे रहे है।
वैन के डाइवर को पता चल गया है कि हादसा टल गया है, गांव का मुखिया अब भी नींद की आगोश में है, कोई भला क्यो उठाये? एम्बुलेंस का ड्राइवर नित्य की भांति मधुााला पहुच चुका है। नर्सो ने रिफर कर बहोत बड़ा काम कर दिया है।
नार्मल डिलवरी तो हो चुकी है….
पर नर्सो का उस निन्दा से उसके शरीर का दर्द प्रसव पीडा से कम नही था। बगीचे में भौरे फिर मंडरा रहे है फिर एक रात आयेगी गाँव में खामोसी है-
फिर भी गांव में वायरस का प्रभाव तीव्र है हमे भी डर है कि इसका संक्रमण हम पर भी न हो जाये।
इस एक रात ने हमे कुछ का कुछ बना दिया। वापस हो भी रहे थे तो हम अपने साथ बहूत कुछ ला रहे थे। एक रात का संसार जायज होते हुये भी नाजायज थे। अभागिन के घर चिराग जल उठे थे। सूर्य किरण के साथ ही चिराग की रोानी मध्यिम पड़ रही थी।
कर्तब्य के अहसास से आंखे उठाये ब्यांयाम…. को निहार रहे थे। जीवन के सृजन मे आने वाला कल जच्चा और बच्चा के लिए क्या रंग लायेगा एक नई कहानी बनेगी जीवन की इस धारा में…………।
समानार्थी शब्द
मधुशाला – शराब दुकान उसनिन्दा – रात्रि जागरण की अनुभूति चकल्लस – लंदफंद
जोक्स – मजाक प्रसूति – गर्भवती भंगी – सफाई करने वाली
कनघऊवा – कान का मैल जुगाड – इन्तजाम राज – राज्य
वेराज – उडिसा ग्राम्या – गांव की महिला टुरा – लड़का
प्रलय खुली – अन्तत्म आनन्द अनुभूति – एहसास
शुक्ला जी का घंटा-
दान द्वारा दिया गया घंटा पौबारा – किस्मत जागी ब्राह्मणत्व – सांसारिक समझ
चस्मा उतारना – पर्दा हटाना चिराग – दीया मद्धिम – धीमा अहसास – मालुम, महसुस
ब्योम – आकाा आगोस – समाया हुआ विप्रद्वे – दो ब्राह्मण डुगडुगी -पुरानी मोटरसायकल
ओछी – निम्न कण्डिल – लालटेन दरवेा- अधोवस्त्रधारी धार्मिक मरीज – धर्म के जिज्ञासू
घंटा घालना – समय बर्बाद करन दर – दरवाजा चोंगी – विशोष की बिड़ी
एक को निपट गया …
– एक मृत्यु को प्राप्त हुआ खटारी – पुरानी गाड़ी गोपाल जाने-परमात्मा की इच्छाबप्रमिला का वायरस – कुआंरी माॅ बनने से समाज का दृटिकोण 12 बजना- ठीकाना लगाना
कातरभाव-मदद की आाा स्वराज – स्वतन्त्र राज्य, गाड़ी का नाम(माजदा)
डीजल से खत्म – अब्यवस्था से बातो का अंत झोला – थैला
ऊपर से नीचे तक –
सभी जगह गेजवा – अड़हा, अनुभवहीन आलय – घर(कुलर या ए.सी.का घर)
गुचबबकुल – उबड़खाबड़ पथ से गाड़ी के उचकना जच्चा – माॅ आफत – संकट
फदकना – फसना आहिस्ता – धीरे से उचकुले – उचकना
प्रसव वेदना – बच्चे जनने के समय का दर्द हवाईयाॅ उड़ना – भय खाना या घबfराना
बेहतरीन से बेहतरीन