क्या हम बेगुनाहों की जान लेकर दूसरों को हक दिलाना चाहते हैं, क्या हमारी परंपरा है? ऐसा तो नहीं कुछ लोग एक दूसरे को लड़ाना चाहते है? सोमवार की घटना के बाद देश में कई सवाल खड़े हो गए हैं। राजनीतिक द्वेष इतना बढ़ चुका है कि बेगुनाहों के मरने तक का भी गम नहीं है। ऐसा तो नहीं देश में राजनीति भटक चुका है? यहां हर मामले को लेकर हस्तक्षेप करना और तांडव करना उद्देश्य बन चुुका है। देश की तमाम विपक्ष पार्टी के लोग आरक्षण को लेकर भारत बंद का समर्थन किए थे। समर्थन के साथ लोगों ने तांडव भी मचाया, जिससे 10 बेगुनाहों को अपनी जान गंवानी पड़ी। सोमवार को स्थति यह रही जिनकों आरक्षण का मतलब भी नहीं मालूम, जो दिनभर मेहनत कर शाम को रोटी खाते हैं, उनकी पेट में लात मारी गई, दुकानों और संस्थानों को जबरदस्ती बंद करवाया गया। दिनभर नारेबाजी करते हुए लोग सड़क पर घुमते रहे।
पांच सवाल जो हमारे लिए चिंता का विषय
0 क्या कानून व्यवस्था ढीली पड़ गई है?
0 क्या आमजनता को दूसरे के इशारे पर चलना होगा?
0 जबरदस्ती को कानून व्यवस्था कब सुधार पाएगा?
0 सभी राजनीतिक पार्टी को मालूम है, भारत स्वत: नहीं बल पूर्वक बंद करवाया गया?
0 बिहार में एंबुलेंस को रोक दी गई जिससे एक मासूम की मौत हो गई क्या यहीं हमारा सिस्टम है।