डॉ. नीरज गजेंद्र
चिंता और डर, ये हमारे मन के सबसे बड़े दुश्मन हैं। चिंता हमें बांध देती है। डर आगे बढ़ने नहीं देता और हार, वह तो बस उसी वक्त आ जाती है जब हम कोशिश करना छोड़ देते हैं। लेकिन उम्मीद, हमें बताती है ठहरो मत, रुको मत, यह वक्त भी बदलेगा। आज का अंधेरा, कल की सुबह का संकेत है। साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता चिली के राष्ट्रीय कवि और प्रख्यात राजनयिक पाब्लो नेरूदा कहते थे कि दुनिया के तमाम फूल काटे जा सकते हैं, लेकिन बसंत को फिर भी आने से कोई नहीं रोक सकता।
यह बात जीवन के गहरे सत्य को उजागर करती है। जब हर ओर निराशा की धुंध छाई हो, जब हालात बदतर हों, तब भी उम्मीद का छोटा सा दीपक अंधेरे से लड़ता रहता है। यही दीपक है जो अंततः व्यक्ति को जीत दिलाता है। हम सभी के जीवन में ऐसे पल आते हैं जब सब कुछ धुंधला लगता है। कोई रास्ता नजर नहीं आता, मन डर और चिंता से घिर जाता है। ऐसे में सवाल यही होता है क्या अब भी आगे बढ़ा जा सकता है। अब सवाल उठता है कि क्या यह अंधेरा कभी छंटेगा। अगर हमारे भीतर उम्मीद जिंदा है तब जवाब हां में मिलता है।
दरअसल उम्मीद एक भावना है। एक दिशा है। एक संकल्प है। एक जिद है कि चाहे हालात जैसे भी हों, मैं हार नहीं मानूंगा। यह एक मानसिक ऊर्जा है जो हमें खींचकर अंधेरे से उजाले में लाती है। उम्मीद वह ताकत है जो एक बीज को पत्थरों के बीच से अंकुरित करती है, एक पंछी को तूफान में उड़ान भरने का साहस देती है। यह जानना बहुत जरूरी है कि उम्मीद और चिंता एक ही मन में एक साथ नहीं रह सकते। चिंता उस कीड़े की तरह है जो आत्मा को भीतर से खोखला करता है। वह भविष्य की अनिश्चितता से डराकर व्यक्ति को अभी की संभावनाओं से भी काट देती है। जबकि उम्मीद हमें भविष्य की अंधेरी गली में भी एक दरवाजा दिखाती है। कहती है कि हाँ, मुश्किलें हैं लेकिन तुम अकेले नहीं हो, और यह वक्त भी कट जाएगा।
महात्मा गांधी कहा करते थे कि आप कभी नहीं जान सकते कि आपके प्रयास कब रंग लाएंगे, लेकिन अगर आप प्रयास करना छोड़ देंगे तो यह तय है कि कुछ नहीं बदलेगा। सोचिए श्रीराम ने उम्मीद छोड़ दी होती तो क्या रावण का अंत होता। अगर पांडवों ने हार मान ली होती तो धर्म की जीत कैसे होती। यह पौराणिक कथाएं हमें बताती हैं कि जितनी भी बड़ी लड़ाइयां हों, अगर भीतर आशा का दीप जल रहा है तो अंत में विजय ज़रूर मिलती है। नचिकेता का उदाहरण लें, जिसने मृत्यु के देवता यम के सामने खड़े होकर आत्मा का ज्ञान मांगा। यह किसी बाहरी ताकत से नहीं, भीतर की अदम्य जिज्ञासा और उम्मीद से संभव हुआ।
आज की दुनिया में भी ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जिन्होंने दिखाया कि कैसे उम्मीद से जीत हासिल की जा सकती है। अंधेरे और मौन की दुनिया में रहते हुए हेलेन केलर ने पूरी दुनिया को आवाज़ दी। उनकी जिंदगी में भी असंख्य रुकावटें थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि उम्मीद उनके भीतर जिंदा रही। इसी तरह चाहे वो कृत्रिम पैर के साथ नृत्य करती सुदा चंद्रन हों, या एक पैर खोने के बाद भी एवरेस्ट फतह करने वाली अरुणिमा सिन्हा, या फिर बिना कोचिंग किसान पुत्र अर्जुन मोकाशी और समाज की बंदिशों को तोड़ आईएएस बनने वाली टीना डाबी हों। इन सभी ने हमें यही सिखाया है कि जब उम्मीद जीवित हो, तो कोई बाधा बड़ी नहीं होती।
उम्मीद कोई जादू नहीं है, जिसे अचानक महसूस किया जा सके। यह धीरे-धीरे विकसित होती है। इसके लिए अपने भीतर की आवाज को सुनना चाहिए। जब हम दूसरों की बातों से ज्यादा खुद की अंतरात्मा पर ध्यान देते हैं तो उम्मीद जगती है। सकारात्मक उदाहरणों को पढ़ने-सुनने से आत्मबल बढ़ता हैं। अपने छोटे प्रयासों को महत्व देते रहेंगे तो आप छोटे-छोटे लक्ष्य पूरे कर रहे होंगे। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है। यथा संभव ध्यान और प्रार्थना के लिए समय निकालकर मन को शांत करेंगे तो उससे आत्मिक ऊर्जा मिलेगी और जब आप अपने विचारों को लिखें तब दुख, डर और चिंता आपके दिमाग से कागज पर उतरेगी। मन साफ होगा और साफ मन में उम्मीद अपनी जगह बनाएगी। यह तब संभव है जब तुलना बंद कर अपनी कहानी को अपना बनाकर रखें। बीते समय को दोष देने के बजाए नया आरंभ करें क्यों कि बीते कल को बदला नहीं जा सकता।
उम्मीद सिर्फ आत्मबल से नहीं, आस्था से भी जुड़ी होती है। जब इंसान खुद पर भरोसा खोने लगे, तब उसे किसी उच्च शक्ति, परमात्मा या ब्रह्म पर भरोसा रखना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं न हि कल्याणकृत् कश्चित् दुर्गतिं तात गच्छति। यानि हे अर्जुन, जो सच्चे मन से शुभ कर्म करता है, वह कभी विनाश को प्राप्त नहीं होता। यह हमें यही सिखाता है कि अगर नियत और प्रयास अच्छे हों, तो देर हो सकती है, हार नहीं।
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक हैं, जो हिंदी मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सक्रिय रहते हुए सामाजिक उन्नति की परिकल्पना को शब्दबद्ध कर रहे हैं।)