महासमुंद। कलेक्टर कार्तिकेया गोयल ने जिले के किसानों से एक बार और पुनः अपील की कि धान की फसल कटने के बाद शेष बचें अवशेष को खेतों में न जलाएं और पैरादान गौठानों में करें ताकि मवेशियों के चारें के रूप में काम आ सकें। उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों का उचित तरीकें से प्रबंधन नहीं करके किसानों द्वारा बहुतायात में नरई (पराली) जलाने की घटना सामने आ रही है। उन्होंने कहा कि फसलों के अवशेष जलाने से पर्यावरणीय एवं मृदा जनित समस्याएं जैसे पोषक तत्वों की कमी, मृदा में उर्वरता की कमी, कार्बनिक पदार्थो की कमी एवं मृदा की भौतिक दशाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ने के साथ-साथ वायु प्रदूषण होने के परिणाम स्वरूप मानव स्वास्थय पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
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कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा जिले के किसानों से भी बार-बार अपील कर रहें हैं कि किसान फसल अवशेषों को खेत में न जलाकर स्थानीय गौठानों में पैरादान करें। जिससे मवेशियों को गौठानों पर ही उचित चारा मिल सकें। इसके अलावा किसान अपने खेतों में पैरा को एक जगह एकत्र कर वेस्ट-डी-कम्पोजर के माध्यम से कम्पोस्ट खाद तैयार करें या अवशेष को वापस भूमि में मिलाकर खाद तैयार कर लेवें साथ ही साथ घर के पशुओं के लिए सुखे चारे के रूप मे उपयोग करें।कृषि विभाग के उप संचालक एस.आर. डोंगरे ने बताया कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के अंतर्गत
http://महासमुंद। जिले में अब तक 7799 बोरा धान अर्थात् 3119.6 क्विंटल धान एवं 09 वाहन जप्त
फसल कटाई के पश्चात् खेत में बचे हुए फसल अवशेष को जलाने से वायु प्रदूषण होने की संभावना को देखते हुए नरई जलाने के लिए प्रतिबंधित किया गया है। यदि कोई किसान फसल अवशेष (पराली) जलाते हुए पाया गया तो 02 एकड़ से कम रकबा के लिए 2500 रूपए प्रति घटना, 02 से 05 एकड़ तक पाॅच हजार रूपए प्रति घटना एवं 05 एकड़ से अधिक पर 15 हजार रूपए प्रति घटना तथा 06 माह की सजा देने का प्रावधान है। फसल अवशेष (पराली) जलाने पर विकासखण्ड महासमुंद के लगभग 51 किसानों को फसल अवशेष जलाने के संबंध में कृषि विभाग द्वारा स्पष्टीकरण मांगी गई है।
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