आज भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। इस तिथि को पूर्णिमा श्राद्ध, श्राद्धि पूर्णिमा और प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहा जाता है। जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो, उनके लिए इस दिन श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृदोष का शमन होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व
- इसे पार्वण श्राद्ध भी कहा जाता है। 
- इस दिन श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। 
- पूर्वज अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर परिवार की रक्षा करते हैं। 
- विद्वानों के अनुसार, श्राद्ध व तर्पण अपराह्न काल (दोपहर 12 बजे से पहले) करना सबसे शुभ माना जाता है। 
पितृपक्ष की शुरुआत और समापन
- पितृपक्ष हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होता है। 
- समापन आश्विन मास की अमावस्या (महालया अमावस्या) को होता है। 
- वर्ष 2025 में पितृपक्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर तक रहेगा। 
पूर्णिमा श्राद्ध और तर्पण का शुभ समय
- कुतुप काल: आज सुबह 11:54 बजे से दोपहर 12:44 बजे तक 
- सूतक काल प्रारंभ: दोपहर 12:57 बजे से 
 👉 श्राद्ध और तर्पण का सबसे उत्तम समय 11:54 बजे से 12:44 बजे तक है। इसके बाद सूतक काल शुरू हो जाएगा, जिसमें कोई भी शुभ कार्य वर्जित माना जाता है।
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भाद्रपद पूर्णिमा तिथि 2025
- पूर्णिमा प्रारंभ: 6 सितंबर, रात 1:42 बजे से 
- पूर्णिमा समाप्त: 7 सितंबर, रात 11:39 बजे तक 
- उदया तिथि मान्य होने के कारण पूर्णिमा व श्राद्ध 7 सितंबर, रविवार को मनाया जाएगा। 
आज का चंद्र ग्रहण 2025
- आज ग्रहण प्रारंभ: 7 सितंबर, रात 9:58 बजे से 
- ग्रहण समाप्त: 8 सितंबर, रात 1:26 बजे तक 
- कुल अवधि: 3 घंटे 29 मिनट 
 👉 आज का चंद्र ग्रहण भारत में दृश्यमान होगा और धार्मिक दृष्टि से सूतक काल मान्य रहेगा।
इस प्रकार करें पूर्णिमा श्राद्ध
- स्नान और संकल्प लेकर श्राद्ध विधि की शुरुआत करें। 
- पितरों के नाम से तर्पण, पिंडदान और पंचबलि कर्म करें। 
- ब्राह्मण भोज और दान-दक्षिणा का विशेष महत्व है। 
- गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन कराना अनिवार्य माना गया है, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना जाता है। 
- सात्विक भोजन और तिल-तर्पण से पितरों की आत्मा तृप्त होती है। 
धार्मिक महत्व
आज पूर्णिमा का श्राद्ध न केवल पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का अवसर है, बल्कि यह परिवार की सुख-शांति और समृद्धि का मार्ग भी है। मान्यता है कि इस दिन किए गए दान और तर्पण से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
 
				



