अंतर्मन की सत्ता, चेतन और अवचेतन की रहस्यमयी साधना का विश्लेषण

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डॉ नीरज गजेंद्र

मनुष्य का जीवन जितना बाहरी जगत में गतिमान है, उससे कहीं अधिक वह अपनी भीतरी दुनिया में उलझा और संचालित होता है। हम जो सोचते हैं, जो अनुभव करते हैं और जो निर्णय लेते हैं, वे सब सतह पर दिखाई देने वाली तरंगों के समान होते हैं। इन तरंगों की उत्पत्ति एक गहरे, रहस्यमयी सागर से होती है। हम सब अपने जीवन में सोचते हैं, निर्णय लेते हैं, भावनाएं महसूस करते हैं और उनके अनुरूप कार्य करते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि इन सभी अनुभवों के पीछे कौन-सी शक्तियां काम करती हैं। यही वे रहस्यमयी और प्रभावशाली शक्तियां हैं जिन्हें चेतन और अवचेतन मन कहा जाता है। व्यक्ति को इन दोनों स्तरों की समझ हो जाए, तो वह जीवन को एक नई दिशा देने में सक्षम हो सकता है। हमारा चेतन मन एक पतवार के समान है, जो नाव को दिशा देता है। पर दिशा चाहे कोई भी हो, नाव की गति, उसकी स्थिरता और उसके भीतर बह रही इच्छाओं की धारा, उस अवचेतन मन से ही संचालित होती है, जो शांति से गहरे जल में छिपा रहता है।

प्राचीन भारतीय चिंतन में मन को जैविक अंग के साथ आत्मा और ब्रह्म के बीच की कड़ी माना गया है। मन एव मनुष्याणां कारणं बंध मोक्षयोः। अर्थात, मन ही बंधन का कारण और मुक्ति का साधन भी है । लेकिन यह मन कौन-सा है,  वह जो प्रतिदिन की बातों में उलझा रहता है। हमारे शास्त्रों से लेकर आधुनिक मनोविज्ञान तक सभी यही कहते हैं कि मन ही सब कुछ है। यथाभावं तद्भवति, उपनिषदों का यह वाक्य इस बात को दर्शाता है कि जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही बनते हैं। चेतन मन वह है जिससे हम जागरूक रहते हैं। जब हम किसी योजना पर काम करते हैं, जब हम तर्क करते हैं, जब हम विकल्पों पर विचार करते हैं तब चेतन मन सक्रिय होता है। यह वह सतही परत है, जिससे हम दुनिया को देखते, समझते और निर्णय लेते हैं। पर वास्तव में चेतन मन तो बस एक ड्राइविंग सीट है। उसके पीछे जो पूरा इंजन काम करता है, वह हमारा अवचेतन मन है। अवचेतन मन वह अदृश्य शक्ति है, जो हमारे अनुभवों, विश्वासों, आदतों और भावनाओं को जमा करता है। यह हर वह बात याद रखता है, जो हमें लगता है कि हम भूल चुके हैं। यही वह हिस्सा है, जो हमें बिना सोचे बोलने, चलने, प्रतिक्रिया देने, और यहां तक कि रोजमर्रा के निर्णय लेने में भी प्रभावित करता है।

आधुनिक विज्ञान भी अब इस दर्शन की पुष्टि करता है। न्यूरोसाइंस और मनोविज्ञान यह सिद्ध कर चुके हैं कि हमारे मस्तिष्क का अधिकांश लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा अवचेतन रूप से कार्य करता है। आस्ट्रियन न्यूरोलॉजिस्ट और मनोविश्लेषण के जनक सिगमंड फ्रायड ने मन को तीन भागों इड, ईगो और सुपर ईगो में बांटा है,  उन्होंने बताया कि हमारे अधिकांश व्यवहार अवचेतन स्तर से संचालित होते हैं। यह समझ केवल मनोविज्ञान तक सीमित नहीं है। हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं में भी मन की गहराइयों का उल्लेख मिलता है। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं उद्धरेदात्मनात्मानं अर्थात अपने आप को अपने मन से ऊपर उठाओ। यह आत्म-संवाद का संकेत है, जहां हम अपने भीतर के गहरे विचारों से जुड़ते हैं। स्वामी विवेकानंद, जिनकी विचार-क्रांति ने भारत और विश्व को झकझोर, का यह दृढ़ विश्वास था कि मनुष्य अपने विचारों से निर्मित होता है। उनके अनुसार, बार-बार दोहराया गया कोई भी विचार अंततः अवचेतन में स्थापित हो जाता है और एक दिन हमारी प्रकृति बन जाता है। यही कारण है कि वे युवाओं से कहते थे एक विचार लो, उसे जीवन का उद्देश्य बना लो, उसमें डूब जाओ।

 महात्मा गांधी का जीवन इसका आदर्श उदाहरण है। उनका सत्य और अहिंसा पर आधारित जीवन केवल किसी वैचारिक चेतना का परिणाम नहीं था, बल्कि वर्षों की साधना से उनके अवचेतन में ये मूल्य स्थायी रूप से अंकित हो चुके थे। वे कहते थे मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। यह कथन बताता है कि उनके हर कर्म, प्रतिक्रिया और मौन में भी उनके मन की गहराइयां बोलती थीं। भारतीय संस्कृति में संस्कार की अवधारणा भी इसी पर आधारित है। बचपन से ही जो बातें, व्यवहार और धारणाएं किसी के भीतर डाली जाती हैं, वे अवचेतन में समा जाती हैं और आगे चलकर जीवन को आकार देती हैं।  आज जब हम आत्म-विकास की बात करते हैं, मोटिवेशन शब्द प्रचलन में है, तब यह समझना अति आवश्यक हो जाता है कि असली बदलाव चेतन से नहीं, अवचेतन से होता है। जब हम दिन-रात बार-बार खुद से कहते हैं मैं कर सकता हूं, मैं सफल हूं, मैं शांत हूं, तो ये बातें धीरे-धीरे अवचेतन में दर्ज हो जाती हैं और वहीं से हमारा व्यवहार बदलना प्रारंभ होता है।

फूलों की सुगंध और मनुष्य की अच्छाई किस-किस दिशा में कैसे फैलती है, बता रहे डॉ. नीरज गजेंद्र

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