पहलगाम की घटना पर पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार डॉ नीरज गजेंद्र का लिखा- आत्मनिर्भर और निर्णायक रणनीति की चाह

पहलगाम

पहलगाम की पीड़ा अब केवल घाटी की गूंज नहीं रही। यह पूरे भारत के अंतर्मन में धधकती हुई वेदना है। एक बार फिर निर्दोष नागरिकों को टारगेट किया गया। एक बार फिर पाकिस्तान अपनी आदत के मुताबिक झूठ बोलता नजर आया। हम यहां किसी एक आतंकी घटना की चर्चा नहीं कर रहे। चर्चा का उद्देश्य उस दीर्घकालिक समस्या को चिन्हित करना है, जिसे हम सात दशकों से संयम’ और राजनयिक शिष्टाचार के आवरण में ढंकते आए हैं।

पाकिस्तान की नीति राजनीतिक रूप से अस्थिर रहते हुए सैन्य और कट्टरपंथी तत्वों को आगे बढ़ाना और कश्मीर में सदाबहार संकट को बनाए रखना। उनके सेना प्रमुखों से लेकर कट्टरपंथी संगठनों तक कश्मीर को गले की नस बताकर कोई नया विमर्श प्रस्तुत नहीं किया है, बल्कि व्यवस्थित आतंकी सोच का दस्तावेज़ सामने रखा है। वास्तव में पाकिस्तान के लिए कश्मीर न भूभाग है, न कौमी भावना। वह वहां केवल भारत को अस्थिर रखने की जमीन देखता है। वह हर चुनाव से पहले, हर राजनयिक प्रयास के बाद एक हमला करवाता है, ताकि शांति का रास्ता अविश्वास में बदल जाए।

यह संतोष का विषय है कि भारत की प्रतिक्रिया अब पहले जैसी नहीं रही । सिंधु जल संधि की समीक्षा, अटारी बॉर्डर बंद करने की चेतावनी, पाकिस्तानी उच्चायोग के सीमांकन आदि कदम साहसिक हैं। लेकिन हमें यह स्वीकारना होगा कि अब समय मूल नीति की पुनर्समीक्षा का है। आतंकी हमलों पर हर बार प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई कर देना काफी नहीं। हमें एक दीर्घकालिक रणनीतिक प्रतिरोध संरचना की ज़रूरत है।

जन भावना है कि पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर आतंक के समर्थनकर्ता के रूप में चिह्नित किया जाना चाहिए। उसकी वैश्विक छवि को हर मंच पर चुनौती देकर चीन जैसे देशों की भूमिका को भी सावधानी से उजागर करना चाहिए। वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संपर्कों को सीमित कर खेल और मीडिया में सौहार्द्र के भ्रम को तोड़ना भी अब ज़रूरी हो गया है। एलओसी पर हर उकसावे का जवाब सिर्फ गोलियों से नहीं, रणनीतिक प्रहारों से देना चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक को प्रतीकात्मक बनाए रखने के बजाए नियमित विकल्प बनाने की आवश्यकता है। कश्मीर में विकास, शिक्षा और स्थानीय विश्वास को साधने वाली नीति को राजनीतिक लाभ से ऊपर उठाना होगा। कट्टरवाद को जड़ से हटाने की पहल और स्थानीय युवाओं को वैश्विक नागरिक बनाने की प्रक्रिया तेज करनी होगी।

यह संकट एक अवसर भी है। पहलगाम की त्रासदी से भारत को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह अब आत्मरक्षा की नहीं, आत्मनिर्भर रणनीति की राह पर है। हमारे पास अब केवल नैतिक श्रेष्ठता की ढाल नहीं, वैश्विक समर्थन, आर्थिक शक्ति और सैन्य बल भी है।

भारत की जनता अब शोक नहीं, दृढ़ता चाहती है। वह चाहती है कि आतंक के पोषकों को ऐसा जवाब मिले जो एक पीढ़ी नहीं, कई पीढ़ियों को याद रहे। पहलगाम के आंसू इतिहास में दर्ज हो जाएंगे। लेकिन अगर इस बार भारत ने अपनी नीति को पुनर्परिभाषित किया, तो यह हमला सिर्फ पीड़ा नहीं रहेगा यह पुनर्जागरण का क्षण बनेगा।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र ने ऐसा क्यों कहा कि अफवाहें हमेशा से विनाश का कारण रही हैं

 

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