रायपुर। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह शुभ तिथि 6 अक्टूबर 2025, सोमवार को है। सनातन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था।
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होते हैं, और उनकी किरणों में अमृत बरसता है। इस रात की चांदनी अत्यंत शीतल और दिव्य मानी जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु और चंद्र देव की पूजा का विधान है।
🌸 शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी प्रकटोत्सव भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं।
मान्यता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके घर में धन, सौभाग्य और समृद्धि का वास होता है।
इस रात को “कोजागरी पूर्णिमा” भी कहा जाता है — यानी कौन जाग रहा है? — माना जाता है कि जो व्यक्ति इस रात जागरण कर मां लक्ष्मी का ध्यान करता है, उस पर देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है।

🍚 खीर बनाने की परंपरा
शरद पूर्णिमा की रात घर-घर में दूध और चावल से बनी खीर तैयार की जाती है। परंपरा के अनुसार, यह खीर खुले आसमान के नीचे रखी जाती है ताकि उसमें चंद्रमा की शीतलता और अमृत तत्व समा जाए।
सुबह इस खीर को भगवान को अर्पित कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। कहा जाता है कि यह खीर रोग दूर करने, मन को शांति देने और सौभाग्य बढ़ाने वाली होती है।
🌕 क्यों खास होती है खीर?
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि शरद पूर्णिमा की रात बनी खीर का सेवन अमृत के समान फलदायी होता है।
दूध – पवित्रता और पोषण का प्रतीक
चावल – स्थिरता और संतुलन का प्रतीक
चीनी – जीवन में मिठास और आनंद का प्रतीक
इन तीनों तत्वों से बनी खीर देवी-देवताओं को अर्पित करने से सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
🪔 शरद पूर्णिमा व्रत के लाभ
कुंडली में चंद्रमा को मजबूत करता है।
व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति, सौंदर्य और सफलता आती है।
जो भक्त इस दिन व्रत रखकर चंद्रमा की पूजा करते हैं, उन्हें धन, स्वास्थ्य और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।
📿 विशेष संदेश:
शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे बैठकर चांदनी में ध्यान करना, या मां लक्ष्मी का स्मरण करना अत्यंत शुभ माना गया है। यह रात केवल पूजा की नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और समृद्धि की साधना का प्रतीक है।
🔸 तिथि: 6 अक्टूबर 2025, सोमवार
🔸 पर्व: शरद पूर्णिमा (लक्ष्मी प्रकटोत्सव)
🔸 स्रोत: हिंदू पंचांग एवं पौराणिक मान्यताएं
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