दिलीप शर्मा। चार दशक पहले ”गरवा’’ परिवार का एक अभिन्न अंग रहा करता था। ”गरवा’’ के बीमार हो जाने से परिवार के लोग चिंतित हो जाते थे। लेकिन अब ”गरवा’’ को ‘’आवारा” नाम दे दिया गया है, और सच भी यहीं है? प्रदेश सरकार ने ”गरवा’’ को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया, हालांकि इसका त्वरित लाभ नहीं मिलने के कारण रोजाना सड़कों पर दर्जनों ”गरवा’’ दम तोड़ रही है। ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी शासन-प्रशासन को नहीं है, लेकिन अभी तक जिम्मेदारी तय नहीं हुई है, कि सड़क से ”गरवा’’ को कैसे हटाया जाए?
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बतादें कि बीती रात (सोमवार) को राष्ट्रीय राज मार्ग 53 टप्पा सवैया ( पिथौरा) के पास अज्ञात वाहन ने एक साथ 9 ”गरवा’’ को रौंद डाला, सभी की मौत हो गई। मंगलवार की सुबह ढाक टोल के कर्मचारियों द्वारा मवेशियों को सड़क से हटाया गया। यह पहली घटना है ऐसा नहीं। सराईपाली से रायपुर तक हाइवे में रोजाना दर्जनों ”गरवा’’ की मौत होती है। आखिर ”गरवा’’ को संरक्षित करने की दिशा यहां से क्यो शुरू नहीं हो रही है? विडबंना आज हजारों की संख्या में ”गरवा’’ लावारिश स्थिति में है, खासकर बरसात के कारण ”गरवा’’ सड़क पर आ जाती है, एक तरह से ”गरवा’’ का घर सड़क बन गई है। इधर, इन आवारा मवेशियों के कारण किसान परेशान हैं, किसानों के फसल चौपट हो रहा है।
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प्रदेश सरकार के मंशानुरूप गरवा के लिए गांवों में जो भी पशु-धन है उन्हें एक ऐसा डे-केयर सेंटर उपलब्ध करवाना है, जिसमें वे आसानी रह सके और उन्हें चारा, पानी उपलब्ध हो। इसके लिए उसके लिए गोठान निर्माण से लेकर आवश्यक संसाधन, जमीन आदि प्रदान किए जा रहे हैं। लेकिन, हाइवे और सड़कों पर जमघट गरवा को हटाने की दिशा में अब तक प्रयास नहीं किए गए हैं। जिसका नतीजा कि रोजाना दर्जनों गरवा बेमौत मारे जा रहे हैं?
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