G-20 सम्मेलन के निमंत्रण में ‘प्रेजिडेंट ऑफ़ India’ की बजाय ‘प्रेजिडेंट ऑफ़ भारत’ लिखे जाने की चर्चा मंगलवार से जारी है. विपक्षी दलों ने India की बजाय भारत लिखे जाने पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की. द इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, सरकार ने भारत नाम के साथ एक बुकलेट (पुस्तिका) जारी की है. ये बुकलेट PM नरेंद्र मोदी के इंडोनेशिया में होने वाले आसियान सम्मेलन में शामिल होने से जुड़ी है. बुकलेट में PM मोदी को इंडिया के प्रधानमंत्री की बजाय भारत के प्रधानमंत्री लिखा गया है.
क्या नाम संविधान में भी बदला जाएगा?
विपक्षी दलों के नेताओं और कुछ मीडिया चैनलों की ओर से ये भी कहा जा रहा था कि संसद का विशेष सत्र भी इंडिया का नाम भारत करने के लिए बुलाया जा रहा है. अब इस बारे में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने बात की है.
अनुराग ठाकुर ने ऐसी ख़बरों को अफ़वाह बताया. ठाकुर ने कहा, ”मुझे लगता है कि ये सब अफ़वाहें हैं. मैं बस ये कहना चाहता हूं कि ऐसा कोई भी जिसे भारत नाम से दिक़्क़त है, वो उसकी मानसिकता बताता है.”
ठाकुर बोले, ”मैं भारत सरकार में मंत्री हूँ. इसमें कुछ नया नहीं है. जी-20 के लोगो में भारत और इंडिया दोनों लिखा है. ऐसे में वो भारत नाम पर आपत्ति क्यों जता रहे हैं? जब वो विदेश जाते हैं तो भारत की आलोचना करते हैं. जब वो भारत में रहते हैं तो भारत नाम पर आपत्ति जताते हैं.”
क्या इंडिया नाम को ड्रॉप किया जा रहा है?
इस बारे में अनुराग ठाकुर कहते हैं, ”किसने ड्रॉप किया है? किसी ने नहीं किया है. जी-20 की ब्रैंडिंग में भी इंडिया 2023 और भारत लिखा हुआ है. भारत लिखे होने पर किसी को आपत्ति क्यों है. ये ब्रैंडिंग बीते एक साल से चल रही है.”
अनुराग ठाकुर का ये बयान ऐसे वक़्त में आया है, जब कई नेताओं ने राष्ट्रपति भवन में होने वाले भोज का निमंत्रण पत्र साझा किया था. इस निमंत्रण पत्र में भारत लिखे होने पर विपक्षी दलों के नेताओं का कहना था कि ये संविधान के आर्टिकल-1 का उल्लंघन है.
संविधान का आर्टिकल-1 कहता है कि इंडिया मतलब भारत, जो राज्यों का संघ है. इसे 18 सितंबर 1949 को संविधान सभा में अपनाया गया था.
जी-20 का निमंत्रण

बीजेपी नेताओं की भारत पर चर्चा
मंगलवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रेजिडेंट ऑफ भारत लिखा निमंत्रण पत्र सोशल मीडिया पर साझा किया था.
असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरना ने भी सोशल मीडिया पर रिपब्लिक ऑफ भारत लिखते हुए कहा था कि देश का इंग्लिश नाम क्यों होना चाहिए?
पीएम मोदी भी अतीत में कई मौक़ों पर भारत के गौरवशाली इतिहास, सभ्यता जैसी बातें करते रहे हैं.
PM मोदी ने कई बार कहा है कि हमें ग़ुलामी की जंजीरों से बाहर निकलना चाहिए. अपने भाषणों में वो ऐसे भी संकेत देते रहे हैं कि भारत को अंग्रेज़ों के दौर से बाहर निकलने की ज़रूरत है.

संसद के मॉनसून सत्र में आईपीसी, सीआरपीसी जैसे क़ानूनों को बदलने की भी शुरुआत सरकार की ओर से हो चुकी है.
इससे पहले सरकार ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ रखा था. अंडमान और निकोबार आईलैंड में भी कई द्वीपों के नाम बदलकर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखा गया था.
दिल्ली में PM के आवास को पहले 7 रेस कोर्स रोड कहा जाता था. कुछ साल पहले इसका नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग कर दिया गया था.
INDIA या भारत! क्या बदला जा सकता है देश का नाम? क्या कहता है संविधान?
संविधान में India और भारत दोनों ही शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, यानी दोनों ही शब्द सही हैं. वैसे ऐतिहासिक तथ्य ये है कि हमारे देश को सदियों से भारत और भारतवर्ष कहा जाता रहा है.
क्या हमारे देश का नाम सिर्फ भारत रहेगा? क्या देश के नाम से INDIA शब्द को हटाया जा सकता है? संसद के विशेष अधिवेशन से ठीक पहले ये चर्चा तेज़ हो गई है. सवाल उठ रहा है कि क्या 18 से 22 सितंबर को होने वाले इस विशेष सत्र में देश के नाम से INDIA हटाने को लेकर सरकार कोई विधेयक ला सकती है? दरअसल ये चर्चा तेज हुई है राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के एक निमंत्रण पत्र से.
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राष्ट्रपति की ओर से ये निमंत्रण पत्र जी20 देशों के सम्मेलन में हिस्सा लेने आ रहे सभी देशों के प्रतिनिधियों को रात्रिभोज के लिए भेजा गया है. इसमें अंग्रेज़ी में President of Bharat लिखा हुआ है, जबकि आमतौर पर ऐसे निमंत्रण पत्रों में अंग्रेजी में President of India और हिंदी में भारत के राष्ट्रपति लिखा होता है.
प्रसिडेंट के निमंत्रण पत्र में ‘भारत’ शब्द पर सियासत तेज
राष्ट्रपति के इस निमंत्रण पत्र के सामने आने से चार दिन पहले एक सितंबर को आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी देश के नाम के तौर पर भारत शब्द का इस्तेमाल करने पर जोर दिया था. इस बयान के तीन-चार दिन के अंदर ही राष्ट्रपति के निमंत्रण पत्र में ऐसी ही बात सामने आने पर देश की सियासत और गरमा गई है. इस मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष के नेता आमने-सामने आ गए हैं.
इधर कई विपक्षी दलों के नेताओं ने कहा कि सरकार विपक्षी गठबंधन से डर गई है, जिसका नाम ‘INDIA’ है. आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ‘इंडिया’ गठबंधन के नाम के चलते देश का नाम बदलकर भारत रख रहे हैं. अगर इंडिया गठबंधन ने अपना नाम भारत रख लिया, तो क्या देश का नाम बीजेपी कर देंगे?
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वहीं टीएमसी अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि इसमें नया क्या है, लेकिन पूरी दुनिया इंडिया नाम से जानती है, आज ऐसा क्यों हो गया कि देश का नाम ही बदल रहे हैं?
कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी और आरजेडी नेता तथा बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी उसका विरोध किया और केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए. तेजस्वी ने कहा कि संविधान से लेकर हर तरफ इंडिया और भारत दोनों शब्दों का इस्तेमाल होता है. दरअसल वो ‘इंडिया’ अलायंस से डरे हुए लोग हैं.
उधर विपक्ष के इन सवालों का बीजेपी ने भी उन्हीं तेवरों में जवाब दिया. असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि कांग्रेस का ‘इंडिया’ अलायंस अपनी जगह है, लेकिन आदिकाल से भारत है औ जब तक चांद-सूरज रहेगा भारत भी रहेगा. सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि भारत से क्या दिक्कत है. क्या विपक्ष को अब नाम से भी दिक्कत होने लगी.
संविधान में भारत और इंडिया दोनों शब्दों का इस्तेमाल
वैसे इस मामले में चर्चा आगे बढ़ाने से पहले ये समझना ज़रूरी है कि देश के नाम को लेकर संविधान में क्या कहा गया है. संविधान का अनुच्छेद 1.1 ये बताता है कि आधिकारिक या अनाधिकारिक मक़सद के लिए देश का नाम क्या होगा. ये अनुच्छेद कहता है कि ‘India , that is Bharat, shall be an union of states’ जबकि हिंदी में लिखा है भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा.
संविधान में India और भारत दोनों ही शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, यानी दोनों ही शब्द सही हैं. वैसे ऐतिहासिक तथ्य ये है कि हमारे देश को सदियों से भारत और भारतवर्ष कहा जाता रहा है. पौराणिक साहित्य और महाभारत में भी इसका उल्लेख है.
वैसे भारत शब्द के इस्तेमाल की मांग नई नहीं है. कई बार ये मांग अलग अलग शक्ल में सामने आती रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी के लोकसभा सदस्य के तौर पर 13 मार्च, 2015 को लोकसभा में संविधान के अनुच्छेद 1 में बदलाव के लिए एक प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश किया था.
सुप्रीम कोर्ट में भी गया है देश के नाम का मामला
ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी जा चुका है. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में एक जनहित याचिका पर विचार से इनकार कर दिया था. याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार को इंडिया का नाम बदलकर भारत रखने का निर्देश दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ़ जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस एके सीकरी ने याचिकाकर्ता निरंजन भटवाल को कहा कि वो इस सिलसिले में पहले सरकार के संबंधित विभाग में जाएं.
केंद्र सरकार ने SC को बताया था, देश को इंडिया की जगह भारत कहने की ज़रूरत नहीं
इसी मामले में 2015 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि देश को इंडिया की जगह भारत कहने की ज़रूरत नहीं है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कोर्ट को बताया था कि देश के नाम के मुद्दे पर संविधान सभा में विस्तार से बहस हुई थी और अनुच्छेद 1 को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था.
ये भी कहा गया कि भारत नाम संविधान के मूल ड्राफ्ट में शामिल नहीं था. संविधान सभा में चर्चाओं के दौरान भारत, भारतभूमि, भारतवर्ष, INDIA that is Bharat और Bharat that is India पर विचार किया गया. केंद्र ने कहा कि संविधान सभा में चर्चा के बाद से हालात में ऐसे कोई बदलाव नहीं आए हैं कि नाम की समीक्षा की जाए.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विकास सिंह कहते हैं कि भारत शब्द के इस्तेमाल के लिए संविधान में संशोधन की ज़रूरत नहीं है. वहीं संविधान के मामलों के जानकार और लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य का कहना है कि अगर सब जगह इंडिया के स्थान पर भारत किया गया, तो संविधान में भी संशोधन की ज़रूरत होगी.
देश के नाम पर चर्चा हो रही है, लिहाज़ा संविधान के अनुच्छेद 1.1 को एक बार फिर देख लेते हैं. ये अनुच्छेद कहता है कि ‘India , that is Bharat, shall be a union of states’ जबकि हिंदी में लिखा है भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा.
यानी संविधान के हिसाब से दोनों शब्द सही हैं. अगर ऐसा है, जो है, तो ये नई चर्चा क्यों? कई जानकार मानते हैं कि इसके पीछे सियासत ज़्यादा है.