टीम इंडिया ने भारतीय और विदेशी परिस्थितियों में आम तौर पर बाइलेटरल सीरीज में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन वह करीब एक दशक से आईसीसी टूर्नामेंटों में नियमित रूप से असफल हो रही है.

टीम इंडिया को सबसे हालिया निराशा ऑस्ट्रेलिया में टी20 विश्व कप में इंग्लैंड के हाथों सेमीफाइनल में मिली हार है.

हार्दिक पांड्या ने कहा, टीम इंडिया ने इस चलन को बदलने के लिए कुछ भी नया करने की कोशिश नहीं की है और उनका ध्यान बाइलेटरल मुकाबलों से सीखने पर है.

 हार्दिक पांड्या ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि हमने कुछ नया करने की कोशिश की है

हम थोड़ा जज्बा दिखाने की कोशिश करेंगे. मुझे लगता है कि पिछली कुछ सीरीज में हमने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है.’

हार्दिक पांड्या ने कहा, ‘ये सभी द्विपक्षीय मुकाबले उतने ही चुनौतीपूर्ण हैं. यही एकमात्र तरीका है, 

जिससे हम सीखेंगे और नॉकआउट (आईसीसी टूर्नामेंटों में) के दबाव  से निपटना शुरू करेंगे. तो बीत गयी वो बात गई अब हमें आने वाले समय में अच्छा करने की उम्मीद है.’

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इस सीरीज के लिए पंड्या भारतीय टीम के उपकप्तान भी हैं.

 उन्होंने कहा कि टीम के खिलाड़ी कार्यभार प्रबंधन से जुड़े फैसले से सहज रहते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमें अपनी ‘स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग’ कोच पर विश्वास करना होगा. मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं जो उनके दल पर भरोसा करता है. किसी खिलाड़ी को कब खेलना है

और कब नहीं यह फैसला पूरी तरह से उन लोगों का है. वे इस मामले में काफी पेशेवर हैं.’

इस 29 साल के खिलाड़ी ने कहा, ‘हमारे सभी खिलाड़ियों को भरोसा है कि अगर वे कुछ मैचों से बाहर हो जाते हैं

तो परेशानी की कोई बात नहीं. टीम में इसको लेकर विश्वास का माहौल है कि कार्यभार प्रबंधन से अगर कोई मैच खेलने से चूकता है

तो टीम प्रबंधन वापसी पर उसका ख्याल रखता है. मुझे लगता है कि यही कारण है कि जो खिलाड़ी बाहर गए हैं वे काफी सुरक्षा की भावना के साथ वापस लौटे हैं.’