भोर की पहली किरण जब धरती पर गिरती है, तब कुछ तिथियां सूरज से आशीर्वाद लेकर आती हैं। अक्षय तृतीया ऐसी ही एक तिथि है। एक ऐसा ही शुभ दिन है। जब आस्था, परंपरा, विज्ञान और जीवन-दर्शन शुभकामनाएं लेकर हमारे जीवन में आती हैं, यानी आल कम टू गेदर। यह साधारण पर्व नहीं, शुभता का वह बीज क्षण है जो समय की धूप में भी कभी सूखता नहीं है। जो क्षय न हो, यही अक्षय तृतीया का अर्थ है। यह दिन वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है। यह वही समय है जब पृथ्वी पर सूरज की ताप अपना चरमोत्कर्ष प्रभाव डालती है। हां, मनुष्य के भीतर इस पल में एक ठंडी हवाओं जैसा विश्वास बहता है कि अक्षय तृतीया पर जो भी अच्छा करोगे, वह अनंतकाल तक साथ चलेगा।
शास्त्रों में इसे अतिपुण्यदायक दिन कहा गया है। भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन भूमि, जल, वस्त्र, अन्न, स्वर्ण, गौ, और घी का दान करने से जन्म-जन्म के पाप कटते हैं। स्कंद पुराण में इसे हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य देने वाला दिन कहा गया है। शास्त्र केवल कर्म के निर्देश नहीं देते, वे भाव भी मांगते हैं। वस्तुओं के साथ ही यह समय, स्नेह और सहानुभूति का दान भी मांगता है और उसे अक्षय बना जाता है।
पांडवों को मिला था अक्षय पात्र
अक्षय तृतीया का आकर्षण ग्रंथों तक ही सीमित नहीं है। यह तिथि उन कहानियों से जुड़ी है जो हर भारतीय आंगन की तुलसी के पास बैठकर सुनते हैं। कभी पांडवों को मिला अक्षय पात्र, जिसने उनके जीवन की भूख मिटाई और हमारे लिए यह संदेश छोड़ गया कि सच्चे धर्ममार्गी को कभी अभाव नहीं सताता। कभी श्रीकृष्ण के चरणों में सुदामा का चावल और उस पर टिकी मित्रता की डोर, जो बताती है कि प्रेम जब सच्चा हो, तो चावल भी मोती हो जाते हैं। संयम और संतोष का उत्सव मना रहे जैन परिवारों में इसे ऋषभदेव की तपस्या के पारण का दिन माना गया है।
इन तथ्यों में चाहे धर्म की गहराई हो या भक्ति की सरलता, एक बात समान है कि अक्षय तृतीया उत्सव के साथ चेतना पर्व भी है। वह चेतना जो हमें याद दिलाती है कि इस जीवन में जो भी शुभ है, वह समाप्त नहीं होता, न प्रेम, न पुण्य और न ही हमारी प्रार्थना। इस पर्व की आध्यात्मिक गहराई तब और बढ़ जाती है जब हम आत्मा के स्तर पर सोचते हैं। यह दिन हमें भीतर की यात्रा का अवसर देता है। यह आत्म-संयम, आत्म-निरीक्षण और आत्म-परिष्कार का न्योता है। जब हम भीड़ से हटकर अपने भीतर झांकते हैं, तो पाते हैं कि असली अक्षय बाहर नहीं, हमारे भीतर है।
विज्ञान भी इसे बताता है विशेष
विज्ञान भी इस दिन की सार्थकता को अपने तरीके से समझाता है। वैशाख की तेज धूप में स्नान, व्रत, ध्यान और हल्का आहार शरीर को संतुलित रखते हैं। मनोविज्ञान कहता है कि जब आप दूसरों के लिए कुछ करते हैं वह भी बिना स्वार्थ के, तो मस्तिष्क में डोपामीन और सेरोटोनिन जैसे रसायन बढ़ते हैं, जो हमें मानसिक सुख देते हैं। इसीलिए अक्षय तृतीया पर दान, सेवा और संतोष का भाव हमें भीतर तक ताजगी से भर देता है। अब यह पर्व एक नए रंग में भी ढल चुका है। कुछ लोग इस दिन स्वर्ण खरीदते हैं। नए व्यापार आरंभ करते हैं। अधिकांश लोग विवाह, गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्य करते हैं। बाजार भी इसकी भव्यता से पूर्ण होता है।
शुभ मुहूर्त का पूरा दिन
हमारे देश में आज भी यह दिन एक बड़े पर्व की तरह मनाया जाता है। बुजुर्ग कहा करते थे कि इस दिन कुआं खुदवाने की शुरुअात करनी चाहिए। प्यासे को पानी और भूखे को खाना खिलाने की शुरुआत करनी चाहिए। कहीं पेड़ लगाए जाते हैं, तो कहीं किसी कन्या की शिक्षा के लिए सहयोग दिया जाता है। लोग रक्तदान करते हैं, वृद्धाश्रमों में सेवा करते हैं। यह सनातन की वह संस्कृति है जहां परंपरा जब भावना से जुड़ती है, लेकिन आधुनिकता से टकराती नहीं है। बल्कि और मजबूत हो जाती है। अक्षय तृतीया का असली सार इस एक वाक्य में छिपा है कि हम ऐसा कुछ करें जो नष्ट न हो। एक मुस्कान, एक क्षमा, एक सहायता, ये छोटे-छोटे कर्म कभी नष्ट न हो। ये किसी न किसी रूप में जीवन की रोशनी बनकर रहे और यही है उस अक्षय का मूल अर्थ और भाव है। जीवन की सच्ची पूंजी है, जो समय के पार भी चमकती रहेगी।
भगवान परशुराम जयंती और अक्षय तृतीया की शुभकामनाएं!