महासमुंद. मंगलवार की देर रात हुई घटना को लेकर पुलिस विभाग ने एक बयान जारी किया है। जिसमें कहा है कि शाम 7 बजे सिटी कोतवाली महासमुन्द में सूचना आई कि नाबालिक बच्चों के साथ मारपीट की गई। सूचना पर एसआई समीर डुंगडुंग पहुंचे तो आरोपी अंकित लूनिया द्वारा नाबालिक बच्चों एवं उनके परिजनों को धमकाया जा रहा था। साथ्रो ही आरोपी अंकित लूनिया द्वारा पुलिस के साथ विवाद एवं अभद्रता किया गया ।
सबसे नीचे पढ़िए : आखिर लाठी चार्ज का जिम्मेदार कौन?
पुलिस का कहना है चल रही थी कार्रवाई
- जिसे पुलिस पेट्रोलिंग द्वारा लेकर थाना आया,
- चूंकि महासमुन्द एक चाइल्ड फ्रेंडली पुलिस जिला होने के साथ यूनिसेफ द्वारा इस जिले को चाइल्ड फ्रेंडली मॉडल जिले के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है।
- उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराध पर महासमुन्द पुलिस संवेदनशीलता के साथ बरताव करती है।
- जब अंकित लूनिया को थाने लाकर आवश्यक वैधानिक कार्रवाई चल रही थी।
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कार्रवाई के दौरान पहुंचे विधायक
- इसी दौरान महासमुन्द विधायक विमल चोपड़ा अपने 25-30 समर्थकों के साथ थाने में पहुंचे।
पुलिस ने जारी किया फोटो - एसआई समीर डुंगडुंग से अनावश्यक विवाद व झूमाझटकी कर आरोपी को छुड़ाकर ले जाया गया।
- नाबालिक बच्चों जो माता पिता के साथ अपराध पंजीबद्ध कराने आए थे, उन्हें डराने और धमकाने का प्रयास किया गया।
- तीन चार लड़कियों के साथ लाकर छेड़खानी का आरोप भी पुलिस पर लगाने की कोशिश की गई।
- चूंकि बच्चे भयभीत थे, उनका चिकित्सकीय परीक्षण कराया जाना आवश्यक था।
- लेकिन आरोपियों द्वारा लगातार पुलिस के विरुद्ध नारेबाजी करने एवं प्रार्थी पार्टी को भयभीत करने का प्रयास किया जाता रहा।
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- थाने के पोर्च में बैठकर लगातार नारेबाजी करने से उन्हें समर्थको सहित हटने के लिए बार-बार अपील की।
- लेकिन वे पोर्च में बैठ गए और लगातार नारेबाजी करने लगे।
- इसी बीच उनके समर्थकों ने पत्थर बाजी शुरू कर दिए, उन्हें हटाने के लिए आवश्यक बल प्रयोग किया गया।
छेड़छाड़ का आरोप था… रिपोर्ट दर्ज करने बजाए उग्र होने क्यो किया मजबूर?
दूसरी ओर घटना को लेकर विधायक और उनके समर्थक दूसरे पक्ष के खिलाफ रिपेार्ट दर्ज कराने की मांग कर रहे थे। लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं करने को लेकर यह हंगामा बढ़ गया। इधर, सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कहा है कि
संज्ञेय अपराध के मामलों में अब पुलिस एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी नहीं कर पाएगी। इसकी सूचना पर उसे तत्काल मामला दर्ज करना पड़ेगा। ऐसा न करने पर पुलिसकर्मी दंडित होंगे।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक अहम फैसले में यह व्यवस्था देते हुए कहा है कि ऐसे मामले में पुलिस को प्रारंभिक जांच करने की अनुमति नहीं है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सीआरपीसी की धारा 154 का मंतव्य स्पष्ट करते हुए यह फैसला सुनाया। फैसला सुनाने वाली पीठ के अन्य न्यायाधीश बीएस चौहान, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई व न्यायमूर्ति एसए बोबडे़ थे।
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कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस को मिली सूचना में संज्ञेय अपराध के होने का पता चलता है, तो उसके लिए एफआइआर दर्ज करना अनिवार्य है। उसे प्रारंभिक जांच की अनुमति नहीं है। हालांकि जिन शिकायतों में संज्ञेय अपराध होने का पता नहीं चलता, उन मामलों में पुलिस यह पता लगाने के लिए सीमित जांच कर सकती है कि संज्ञेय अपराध घटित हुआ है कि नहीं? कोर्ट ने साफ किया है कि मामला दर्ज करते समय यह देखना महत्वपूर्ण नहीं है कि सूचना सही है कि गलत या भरोसे लायक है कि नहीं? इन सारी बातों की जांच मामला दर्ज करने के बाद की जाएगी।
अगर झूठी शिकायत है तो शिकायतकर्ता के खिलाफ कार्रवाई
कोर्ट ने कहा है कि अगर जांच के बाद पता चलता है कि शिकायत झूठी है तो शिकायतकर्ता के खिलाफ झूठी एफआइआर दर्ज करने पर मुकदमा चलाया जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि ऐसा समझा जाना कि मामला दर्ज होते ही गिरफ्तारी हो जाएगी और इसलिए पहले शिकायत की जांच-परख होनी चाहिए, ठीक नहीं है। कानून में मनमानी गिरफ्तारी से बचने के उपाए दिए गए हैं।
लेकिन इन बातों को पुलिस ने किया दरकिनार
यहीं वजह रही कि महासमुंद पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाया, अगर पुलिस मामले में गंभीरता दिखाते हुए दूसरे पक्ष का रिपोर्ट कर देती तो लाठीचार्ज और प्रदर्शन करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
पुलिस का जनता के बीच पक्ष रखना कितना सही?
- इधर पुलिस अपने को पाकसाफ बताते हुए एक बयान जारी कर अपना पक्ष रख रही है। जिसमें कहा जा रहा है कि पत्थरबाजी के कारण उनके कई जवान घायल हुए हैं।
- मतलब यह पहली बार हो रहा है कि पुलिस अपने बचाव के लिए व्हाट्सएप के सहारे लोगों कोे बताने की कोशिश कर रहा है।
- मीडिया की मौजूदगी में यह घटनाक्रम हुई, कही पर भी पत्थरबाजी जैसेे घटना का वीडियो अब तक सामने नहीं है।
- हां वीडियो में पुलिस जवान द्वारा यह कहते हुए जरूर सुुना गया कि भीड़ पत्थर फेंक रही है।
अगर पथराव के बाद लाठीचार्ज हुआ है तो वीडियो में उल्टा क्यों दिख रहा है ?वीडियो में दिख रहा है की लड़कियों को भी घसीट कर मारा जा रहा है पुलिस जनता की रक्षा के लिए है न की बेदर्दी से पीटने के लिए |
पुलिस को सूचना भी खिलाड़ियों द्वारा दी गई , बैठे हुए खिलाड़ियों और आम जनता को भी पुलिस द्वारा बल के साथ मारा, पत्थर मार रहे बोल kr जबकि सभी बैठे हुए है रिपोर्ट दर्ज ना करना उल्टा कहना मेरे सिपाही कुछ भी करे में कोई करवाही नई करूंगा एफआईआर दर्ज ना करना इनका गिरा हुआ सोच है जो बिका हुआ है