डॉ. नीरज गजेंद्र
बड़े लक्ष्य की बात होते ही हम अक्सर प्रतिभा, भाग्य या जुगाड़ जैसे शब्दों को याद करते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि सिर्फ प्रतिभा या भाग्य सफलता की गारंटी नहीं है। दुनिया में अनगिनत लोग हुए जिनके पास अद्भुत प्रतिभा थी, मगर वे मंजिल तक नहीं पहुंच पाए। कारण केवल एक उनके पास धैर्य और अनवरत प्रयास की कमी थी। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक एंजेला डकवर्थ ने इसे ग्रिट कहा था। उनका मानना है कि किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए जुनून और निरंतर मेहनत जरूरी है। इंसान अगर ठान ले और लगातार प्रयास करता रहे, तो असंभव भी संभव हो जाता है। यही शिक्षा हमारे धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में बार-बार मिलती है।
रामायण इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। भगवान राम का जीवन कठिनाइयों से भरा था। चौदह वर्षों का वनवास, सीता माता का हरण और रावण से भीषण युद्ध, हर कदम पर संकट आया। लेकिन राम ने हार नहीं मानी। उनका ध्येय धर्म की स्थापना और अन्याय का अंत था। धैर्य और दृढ़ निश्चय के बल पर उन्होंने विजय पाई। महाभारत में अर्जुन का प्रसंग भी यही सिखाता है। अपनों के खिलाफ खड़े होकर भीषण युद्ध करना पड़ा। यहां केवल प्रतिभा से जीत संभव नहीं थी। मानसिक दृढ़ता और सतत प्रयास ही उसकी असली ताकत बने। भगवान कृष्ण ने भी गीता में यही कहा कि कर्म करने का अधिकार तुम्हें है, फल की चिंता मत करो।
यह वाक्य सीधे तौर पर हमें यही सिखाता है कि अगर हम लगातार अपने कर्म यानी प्रयास करते रहें, तो फल अपने-आप मिलेगा। कई बार हम शुरुआत में जोश में होते हैं, लेकिन जैसे ही कठिनाइयां आती हैं, हम थक जाते हैं, पीछे हट जाते हैं। जबकि असली सफलता उन्हीं को मिलती है जो रुकते नहीं, चलते रहते हैं।
समस्या यह है कि हम अक्सर शुरुआत में तो जोश में रहते हैं, लेकिन जैसे ही मुश्किलें सामने आती हैं, कदम पीछे खींच लेते हैं। जबकि असली सफलता उन्हीं को मिलती है जो थकते नहीं, रुकते नहीं। आज की दुनिया में यह और कठिन हो गया है। हर चीज शीघ्र चाहिए, फास्ट इंटरनेट, झटपट रिजल्ट, जल्दी प्रमोशन आदि। ऐसे दौर में धैर्य रखना ही सबसे बड़ी चुनौती है। मगर जो इस तत्काल संतोष की मानसिकता से ऊपर उठ जाते हैं और लंबे समय तक एक दिशा में मेहनत करते रहते हैं, वही असली विजेता बनते हैं।
हमारे पौराणिक प्रसंग भी इसी धैर्य और जुनून का पाठ पढ़ाते हैं। भगीरथ का उदाहरण लीजिए। पितरों की मुक्ति के लिए उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का कठिन व्रत लिया। वर्षों तक कठोर तपस्या की। अनगिनत बार निराशा मिली, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अंततः उनके धैर्य और तप से प्रसन्न होकर गंगा अवतरित हुईं और उनका लक्ष्य पूरा हुआ। यही है असली ग्रिट निरंतर प्रयास और अटूट निश्चय।
इसी तरह ध्रुव की कथा भी प्रेरणा देती है। पांच साल का एक बालक, जिसे पिता के स्नेह से वंचित होना पड़ा। आहत मन से उसने संकल्प लिया कि भगवान का दर्शन करेगा और उनसे ऐसा स्थान मांगेगा, जो कभी डिगे नहीं। छोटे से शरीर में अटूट निश्चय और अकल्पनीय साधना। वर्षों की तपस्या ने अंततः उसे ध्रुवपद दिलाया—आकाश में स्थायी स्थान। यही है निरंतरता और धैर्य की असली मिसाल।
असल में धर्म हमें नैतिकता देता है। अध्यात्म आत्मबल सिखाता है। आधुनिकता तकनीक व स्मार्टनेस बनाता है। जब इन सबके साथ धैर्य और जुनून यानी ग्रिट जुड़ जाए, तो कोई भी लक्ष्य दूर नहीं रह जाता। हर बड़ा सपना लंबा रास्ता मांगता है। उस रास्ते पर कांटे होंगे, अंधेरा होगा, थकान भी होगी। अगर आप चलना नहीं छोड़ते, तो मंजिल एक दिन जरूर मिलेगी। तुलसीदास ने लिखा है कि धीरज, धर्म, मित्र और नारी। आपतकाल परखिए चारी। धैर्य ही असली परीक्षा में सबसे बड़ा सहारा है। इसलिए चलते रहिए। चाहे कदम छोटे हों, पर रुकना नहीं है। रुकने वाले पीछे छूट जाते हैं, और जो चलते रहते हैं, वही इतिहास रचते हैं।
हमसे जुड़े
https://www.facebook.com/webmorcha
https://www.instagram.com/webmorcha/






















