छत्तीसगढ़. महासमुद जिले के घोयनाबाहरा पंचायत के सरपंच-सचिव की मनमानी के चलते गांव के छायादार नीम पेड़ काटकर रंगमंच बना दिया है। ग्रामीणों के विरोध के बावजूद सरपंच-सचिव ने गाव में लोगों को कई सालों से छाया दे रही इस वृक्ष को काट दिया गया। यहीं नहीं वृक्ष काटने के अलावा निजी मकान का रास्ता को भी बंद कर दिए। इसे लेकर ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। पेड़ काटने की शिकायत बागबाहरा तहसीलदार से की गई है। पटवारी जांच कर रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर दिया है। लेकिन कार्रवाई नहीं होने से लोगों में गुस्सा है।
100 साल पुरानी है यह नीम का पेड़
- ग्रामीण मनोज ठाकुर ने बताया कि उक्त नीम के पेड़ से पूरे गांव के लोगों को छाया मिलने के साथ पेड़ के नीचे राहत भरी बैठक और अन्य मुद्दों पर चर्चा होती थी।
- लेकिन सरपंच सचिव की मनमानी के चलते उक्त छायादार पेड़ को काट दिया गया। यहां तक पेड़ काटने की अनुमति कलेक्टर से भी नहीं ली गई।
1 लाख 15 हजार में बनाई गई रंगमंच
- छायादार नींम पेड़ के नीचे 50 से 100 लोग बैठकर चर्चा करते थे, लेकिन सरपंच सचिव ने जो रंगमंच का निर्माण किया है उसमें 10 से 15 लोग ही बैठ सकते हैं।
- मनोज ठाकुर ने कहा एक तरफ सरकार की विकास यात्रा निकाली गई है, वहीं दूसरी ओर प्रकृति को विनाश कर विकास का ढिढोरा पीटा जा रहा है।
- ग्रामीणों ने कहा अगर जल्द इस मामले में प्रशासन संज्ञान नहीं लिया तो, इसके विरोध में प्रदर्शन करेंगे।
इधर छग राज्यपाल ने कहा पर्यावरण सृष्टि का अमूल्य उपहार: उन्होंने आमजनों से पर्यावरण को संरक्षित करने अपील की है..
- 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर राज्यपाल बलरामजी दास टंडन ने नागरिकों से आह्वान किया है कि पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में अपना योगदान दें और इसके लिए सजग एवं प्रतिबद्ध होकर कार्य करें।
- राज्यपाल ने अपने संदेश में कहा है कि पर्यावरण सृष्टि का अमूल्य उपहार है और इसे हमें सहेज कर रखना होगा।
5 जून को है विश्व पर्यावरण दिवस
- आज पृथ्वी में लगातार बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ रही है।
- हम छोटे किन्तु महत्वपूर्ण उपायों जैसे प्लास्टिक का उपयोग न करने, जल संरक्षण के जरिये और वृक्षारोपण के जरिये अपने पर्यावरण को सुरक्षित और समृद्ध बना सकते हैं।
- पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हम सभी को एकजुट होकर हरसंभव प्रयास करने की जरूरत है।
- विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए पूरे विश्व में मनाया जाता है।
- इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी।
- इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था।
- 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
http://जगल काट पका रहे ईंट
यह भी जानिए: नीम के पेड़ गांव में क्यो दवाखाना कहते हैं
- नीम में इतने गुण हैं कि ये कई तरह के रोगों के इलाज में काम आता है।
- यहां तक कि इसको भारत में ‘गांव का दवाखाना’ कहा जाता है।
- यह अपने औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेदिक मेडिसिन में पिछले चार हजार सालों से भी ज्यादा समय से इस्तेमाल हो रहा है।
- नीम को संस्कृत में ‘अरिष्ट’ भी कहा जाता है,
- जिसका मतलब होता है, ‘श्रेष्ठ, पूर्ण और कभी खराब न होने वाला। नीम के अर्क में मधुमेह यानी डायबिटिज, बैक्टिरिया और वायरस से लड़ने के गुण पाए जाते हैं।
- नीम के तने, जड़, छाल और कच्चे फलों में शक्ति-वर्धक और मियादी रोगों से लड़ने का गुण भी पाया जाता है।
- इसकी छाल खासतौर पर मलेरिया और त्वचा संबंधी रोगों में बहुत उपयोगी होती है। नीम के पत्ते भारत से बाहर 34 देशों को निर्यात किए जाते हैं।
- इसके पत्तों में मौजूद बैक्टीरिया से लड़ने वाले गुण मुंहासे, छाले, खाज-खुजली, एक्जिमा वगैरह को दूर करने में मदद करते हैं।
- इसका अर्क मधुमेह, कैंसर, हृदयरोग, हर्पीस, एलर्जी, अल्सर, हिपेटाइटिस (पीलिया) वगैरह के इलाज में भी मदद करता है।
सर्व-रोग-निवारिणी” यानी ‘सभी बीमारियों की दवा
- नीम के बारे में उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों में इसके फल, बीज, तेल, पत्तों, जड़ और छिलके में बीमारियों से लड़ने के कई फायदेमंद गुण बताए गए हैं।
- प्राकृतिक चिकित्सा की भारतीय प्रणाली ‘आयुर्वेद’ के आधार-स्तंभ माने जाने वाले दो प्राचीन ग्रंथों ‘चरक संहिता’ और ‘सुश्रुत संहिता’ में इसके लाभकारी गुणों की चर्चा की गई है।
- इस पेड़ का हर भाग इतना लाभकारी है कि संस्कृत में इसको एक यथायोग्य नाम दिया गया है – “सर्व-रोग-निवारिणी” यानी ‘सभी बीमारियों की दवा।’ लाख दुखों की एक दवा!