ज़िंदगीनामा| डाॅ. नीरज गजेंद्र
हम अक्सर सोचते हैं कि चुप रहना समझदारी या सहनशीलता है। लेकिन अगर हमारे सामने ज़ुल्म हो रहा हो और हम कुछ न बोलें, तो यह चुप्पी एक तरह से उस अन्याय की हामी ही बन जाती है। ऐसे मौन को कमजोरी या डर भी कहा जा सकता है। महात्मा गांधी, जो अहिंसा के सबसे बड़े पक्षधर माने जाते हैं, उन्होंने भी कहा था अगर मुझे कायरता और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो, तो मैं हिंसा को चुनूंगा। यह उनके विचारों का मूल नहीं था, बल्कि एक चेतावनी थी कि शांति का रास्ता तभी तक सही है, जब तक वह इंसाफ से जुड़ा हो।
आज मैं ये बातें इसलिए कर रहा हूं क्योंकि हमारे जीवन में चाहे वह समाज हो, राजनीति हो या व्यक्तिगत रिश्ते। हर जगह दो रास्ते दिखते हैं, पहला वह जो शांत और आसान लगता है, और दूसरा जो मुश्किल जरूर होता है, लेकिन उसमें सत्य, मूल्य और मर्यादा होती है। यह संघर्ष नया नहीं है। हमारी परंपरा में यह हमेशा से रहा है। महाभारत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सनातन संस्कृति में शांति को सबसे बड़ा मूल्य माना गया है। वेदों की आखिरी ऋचाएं ॐ द्यौः शान्तिः अन्तरिक्षं शान्तिः पूरी दुनिया में शांति की कामना करती हैं। लेकिन शांति का मतलब सिर्फ युद्ध न होना नहीं है, बल्कि यह भीतर की स्थिरता और संतुलन है। जब इंसान, समाज और देश संतुलन में होते हैं, तभी सच्ची शांति होती है। गीता में भी कहा गया है कि जिसके मन में शांति नहीं, उसे सुख कैसे मिलेगा। यानी शांति कोई कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मबल की पहचान है।
महाभारत में भी युद्ध अचानक नहीं हुआ। श्रीकृष्ण ने हर मुमकिन कोशिश की, कि युद्ध न हो। उन्होंने सिर्फ पांच गांव मांगे, वो भी इसलिए क्योंकि उन्हें धर्म और भाईचारे की रक्षा करनी थी। लेकिन जब दुर्योधन ने यह भी ठुकरा दिया और श्रीकृष्ण को पकड़ने की कोशिश की, तब साफ हो गया कि अब अधर्म को समझाकर नहीं, लड़कर ही हराया जा सकता है। महाभारत हमें यही सिखाता है जब तक अन्याय की सीमा पार नहीं होती, तब तक शांति सबसे श्रेष्ठ मार्ग है। लेकिन जब धर्म को कुचला जाने लगे, तब चुप रह जाना सबसे बड़ा अपराध होता है। किसी लड़ाई को धर्मयुद्ध तभी कहते हैं जब वह न्याय और मर्यादा की रक्षा के लिए लड़ा जाए।
श्रीकृष्ण ने युद्ध को धर्म कहा लेकिन तब, जब हर दरवाज़ा खटखटाने के बाद भी कोई सुनने को तैयार न था। उन्होंने अर्जुन को केवल धनुष नहीं दिया, बल्कि समझ भी दी। कहा पहले कोशिश करो बातचीत से, समझदारी से, लेकिन जब तुम्हारी विनम्रता को कोई कमजोरी समझे और अधर्म सिर उठाए, तब चुप मत रहो। धर्म अपमानित होने लगे तब चुप रह जाना पाप है। क्योंकि अधर्म के विरुद्ध उठाए गए हर कदम को धर्मयुद्ध कहा गया है।
पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र क्यों कह रहे हैं- हे जनता… हे जनार्दन! न्याय कीजिए, अन्याय मत सहिए