दिलीप शर्मा महासमुंद। प्रधानमंत्री (पीएम) आवास योजना का मकसद गरीब परिवारों को पक्का मकान देना है, लेकिन महासमुंद जिले में विभागीय लापरवाही ने एक परिवार का सपना तोड़ दिया। बागबाहरा ब्लॉक के ग्राम पर्राचुवां में पति-पत्नी दोनों के नाम पर अलग-अलग पीएम आवास स्वीकृत कर दिए गए।
पति-पत्नी को मिले दो-दो आवास
ग्राम पर्राचुवां निवासी सुखमती पति पुरुषोत्तम को करीब पाँच साल पहले ही पीएम आवास स्वीकृत हुआ था और उनका मकान बनकर तैयार भी हो गया। दोनों पति-पत्नी इसी मकान में रह रहे हैं। इसके बावजूद अप्रैल 2025 में पुरुषोत्तम के नाम पर भी पीएम आवास स्वीकृत कर दिया गया और पहली किस्त के रूप में 40 हजार रुपये उनके खाते में जमा हो गए।
नींव से लेकर वॉल लेंटर तक बन गया मकान
परिवार को जब दूसरी बार पीएम आवास स्वीकृत होने की जानकारी हुई तो वे बेहद खुश हुए। उन्होंने तुरंत निर्माण सामग्री खरीदकर मकान बनाना शुरू कर दिया। देखते-ही-देखते मकान नींव से लेकर वॉल लेंटर (छत डालने की तैयारी) तक खड़ा हो गया। लेकिन इसी दौरान विभाग को अपनी गलती का एहसास हुआ और आगे की किश्त रोक दी गई।

अब अधूरा रह गया मकान
विभागीय आदेश के अनुसार पुरुषोत्तम को आगे की कोई किस्त नहीं मिलेगी। ऐसे में मकान वॉल लेंटर तक तो बन गया है, लेकिन अब आगे निर्माण रुक गया है। परिवार आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं है कि अपने दम पर मकान पूरा कर सके। नतीजतन, यह मकान अधूरा सपना बनकर रह गया है।
सचिव और विभाग की दलीलें
ग्राम पंचायत सचिव तुकाराम ठाकुर का कहना है कि यह गलती जीओ-टैगिंग करने वाले कर्मचारी की वजह से हुई है। परिवार की कोई गलती नहीं है, बावजूद इसके उन्हें लगातार राशि लौटाने का दबाव झेलना पड़ा। सचिव का कहना है कि उन्होंने अफसरों के कहने पर अपनी तरफ से 40 हजार रुपये लौटाए।
वहीं, जनपद पंचायत बागबाहरा के पीएम आवास प्रभारी का कहना है कि सचिव की लापरवाही से पति-पत्नी दोनों के नाम पर आवास स्वीकृत हो गया था। अब पुरुषोत्तम को दूसरी किश्त नहीं दी जाएगी।
परिवार की बढ़ी परेशानी
पुराना कच्चा मकान तोड़कर नया पक्का घर बनाने का सपना देखने वाले इस गरीब परिवार की मुश्किलें अब और बढ़ गई हैं। अधूरे मकान की नींव और वॉल लेंटर तक खड़ा ढांचा उनके लिए चिंता का कारण बन गया है। अब वे न पुराने मकान में रह सकते हैं और न ही नया घर पूरा कर पा रहे हैं।
👉 यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि विभागीय लापरवाही की मार सबसे ज्यादा गरीब परिवारों को ही झेलनी पड़ती है।





















