MGNREGA Name Change: मनरेगा का नाम बदला, अब VB-G RAM G योजना—ग्रामीणों के लिए क्या बदलेगा?

MGNREGA renamed to VB-G RAM G scheme showing key changes for rural employment in India

MGNREGA Name Change News in Hindi: केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) को बदलकर एक नई योजना VB-G RAM G (विकसित भारत – गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण) लाने का प्रस्ताव रखा है। इस संबंध में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में विधेयक पेश किया है।

इस बदलाव को लेकर राजनीतिक बहस तेज है। विपक्ष जहां इसे महात्मा गांधी के नाम से जुड़ी योजना को खत्म करने की कोशिश बता रहा है, वहीं सरकार का कहना है कि यह बदलाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नए दौर के अनुरूप मजबूत बनाने के लिए किया गया है।

राजनीति से अलग, सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस बदलाव से आम ग्रामीण मजदूर और मनरेगा लाभार्थियों की जिंदगी में क्या बदलेगा?


🌱 क्यों लाई गई VB-G RAM G योजना?

सरकार का कहना है कि पिछले दो दशकों में मनरेगा ने ग्रामीण इलाकों में रोजगार देने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन इस दौरान गांवों की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में बड़ा बदलाव आया है।
नई योजना को ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य से जोड़ते हुए ग्रामीण विकास का एक नया ढांचा तैयार करने की मंशा जताई गई है, ताकि रोजगार के साथ-साथ आजीविका को भी स्थायी बनाया जा सके।


🧑‍🌾 रोजगार के दिनों में होगा इजाफा

अब तक मनरेगा के तहत एक परिवार को साल में अधिकतम 100 दिन का रोजगार मिलता था।
नई VB-G RAM G योजना के प्रस्ताव में इसे बढ़ाकर 125 दिन करने की बात कही गई है।
इसका मतलब है कि बिना कौशल वाले काम के लिए तैयार हर ग्रामीण परिवार को साल में ज्यादा दिनों तक मजदूरी मिलने का रास्ता खुल सकता है।


⛔ खेती के मौसम में काम नहीं मिलेगा

नई योजना में एक अहम बदलाव यह भी है कि बुआई और कटाई के समय करीब 60 दिनों तक रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाएगा।
सरकार का तर्क है कि इससे खेती के समय खेतों में मजदूरों की कमी नहीं होगी और कृषि कार्य प्रभावित नहीं होंगे।


❌ क्या मनरेगा पूरी तरह खत्म हो जाएगी?

अगर VB-G RAM G से जुड़ा विधेयक संसद से पास होकर लागू हो जाता है, तो 2005 का MGNREGA कानून पूरी तरह निरस्त कर दिया जाएगा
यानी दोनों योजनाएं साथ-साथ नहीं चलेंगी, बल्कि नई योजना ही मनरेगा की जगह ले लेगी।


💰 योजना का खर्च अब कौन उठाएगा?

अब तक मनरेगा का वित्तीय बोझ मुख्य रूप से केंद्र सरकार उठाती थी।
लेकिन नई योजना में राज्यों को भी भागीदारी करनी होगी।
प्रस्ताव के अनुसार, राज्य सरकारों को 10 से 40 प्रतिशत तक खर्च वहन करना पड़ सकता है, जबकि शेष राशि केंद्र सरकार देगी।


🏛️ राज्यों की भूमिका और नई प्रक्रिया

कानून लागू होने के बाद राज्यों को 6 महीने के भीतर अपनी-अपनी योजना तैयार करनी होगी।
नई व्यवस्था के तहत:

  • लाभार्थियों का डिजिटल रजिस्ट्रेशन

  • बायोमेट्रिक पहचान सत्यापन

  • नई आईडी प्रक्रिया

अनिवार्य होगी।
इसका सीधा मतलब यह है कि पुराने मनरेगा कार्डधारकों को भी दोबारा रजिस्ट्रेशन कराना पड़ सकता है


💸 मजदूरी दर को लेकर क्या बदलेगा?

नई योजना के प्रस्ताव में मजदूरी दर को लेकर कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं दिया गया है।
इसका निर्धारण केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर कर सकती हैं, जैसा कि अभी मनरेगा में होता है।
फिलहाल यह साफ नहीं है कि मजदूरी बढ़ेगी या नहीं।


✅ 125 दिन का रोजगार किन्हें मिलेगा?

प्रस्तावित योजना के तहत रोजगार की गारंटी उन्हीं परिवारों को मिलेगी:

  • जो ग्रामीण क्षेत्र में रहते हों

  • जिनका कोई सदस्य बिना कौशल वाला काम करने को तैयार हो

  • जो सरकारी कार्यों में काम करने को इच्छुक हों

यहां भी रोजगार पाने के लिए लोगों को खुद काम की मांग करनी होगी।


🔎 निष्कर्ष: नाम से ज्यादा नियम अहम

मनरेगा का नाम बदलना राजनीतिक मुद्दा हो सकता है, लेकिन आम ग्रामीणों के लिए असली सवाल रोजगार, मजदूरी और प्रक्रिया से जुड़ा है।
अगर नई योजना सही तरीके से लागू होती है, तो रोजगार के दिन बढ़ सकते हैं, लेकिन साथ ही नए नियम, रजिस्ट्रेशन और राज्यों की जिम्मेदारी भी बढ़ेगी।

अब सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि संसद में यह विधेयक किस रूप में पास होता है और ज़मीन पर इसका असर कैसा रहता है।


⚠️ डिस्क्लेमर

यह खबर संसद में पेश विधेयक और प्रस्तावित प्रावधानों पर आधारित है। कानून लागू होने के बाद नियमों में बदलाव संभव है।

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