पुणे। 17 वर्षीय युवा पहलवान सनी फुलमाली ने हाल ही में बहरीन में आयोजित एशियन यूथ रेसलिंग चैंपियनशिप में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। लेकिन उनकी जिंदगी की हकीकत सुनकर किसी की भी आंखें नम हो जाएंगी।
सनी पुणे के लोहेगांव इलाके में अपने परिवार के साथ तिरपाल के नीचे रहते हैं। उनके घर तक पहुंचने का रास्ता पूरी तरह कीचड़ से भरा हुआ है। मुश्किल हालात में भी सनी ने अपनी मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया है।
दादा और पिता से मिली कुश्ती की प्रेरणा
सनी का कुश्ती से रिश्ता विरासत में मिला है। उनके दादा पहलवान थे, जिन्होंने सनी के पिता को पहलवान बनाया। पिता ने आगे चलकर सनी और उनके भाई को ट्रेनिंग दी। सनी बताते हैं कि शुरुआती दिनों में पिता और भाई से प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने पेशेवर कुश्ती की ट्रेनिंग शुरू की। पिछले 4-5 वर्षों से उनके सभी खर्चे उनके वर्तमान कोच वहन कर रहे हैं।
साधारण परिवार, असाधारण संघर्ष
सनी के परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। उनके पिता नंदी बैल के साथ गांव-गांव घूमकर भविष्यवाणी करते हैं, जबकि उनकी मां सुई-धागा बेचकर घर चलाती हैं। तिरपाल में रहने वाले इस परिवार के पास न तो स्थायी घर है, न ही स्थिर आमदनी का कोई साधन।
फिर भी, सनी का हौसला बुलंद है। वे कहते हैं —
“मेरे पिता, भाई और कोच की मेहनत ने ही मुझे यहां तक पहुंचाया है। अब मेरा सपना है कि मैं भारत के लिए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतूं।”
कोचों का योगदान और सनी का सफर
सनी ने शुरुआत में रायबा तल्मित, लोहेगांव स्थित वस्ताद सोमनाथ मोजे और सदाशिव राखपासे से ट्रेनिंग ली। उनकी मेहनत और फिटनेस को देखकर उन्हें लोणीकांड स्थित जनता राजा कुश्ती केंद्र में दाखिला मिला, जहां कोच संदीप भोंडवे के मार्गदर्शन में उन्होंने खुद को तैयार किया। सनी अभी दसवीं कक्षा में पढ़ रहे हैं और भविष्य में भारत का नाम विश्व स्तर पर चमकाने का सपना देख रहे हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो
समाचार एजेंसी एएनआई ने सनी फुलमाली के घर का वीडियो शेयर किया है, जिसमें उनके रहने की स्थिति देख देशभर के लोग भावुक हो गए। वीडियो में सनी की मां घर के काम में लगी दिखाई देती हैं, जबकि बैकग्राउंड में उनका छोटा सा तिरपाल का घर और कीचड़ भरा रास्ता साफ देखा जा सकता है।
देश के लिए स्वर्ण, लेकिन खुद संघर्षरत जीवन
सनी फुलमाली आज उन असली नायकों में से हैं, जिन्होंने गरीबी और कठिनाइयों को मात देकर देश के लिए गौरव लाया। उनकी कहानी यह साबित करती है कि “जहां चाह, वहां राह” — चाहे रास्ता कीचड़ से सना हो या मंज़िल तिरपाल के नीचे क्यों न हो।


















