
महासमुंद. शासकीय अभ्यास प्राथमिक शाला की प्रधान पाठक डेमेश्वरी गजेंद्र ने अपने पुत्र सार्थक के जन्मदिन पर विद्यालय के सभी विद्यार्थियों को स्कूल बैग वितरित किए। यह वितरण उस प्रतिबद्धता का प्रतीक है, जिसके अंतर्गत डेमेश्वरी प्रत्येक वर्ष अपनी एक माह की सैलरी बच्चों की शैक्षणिक आवश्यकताओं पर खर्च करती हैं। बैग वितरण कार्यक्रम के मुख्यअतिथि जिला शिक्षा अधिकारी विजय लहरे ने कहा कि डेमेश्वरी मैडम का यह दृष्टिकोण उन्हें एक सामान्य शिक्षक से अलग पहचान देता है। वे शिक्षा को कक्षा और बच्चों की गरिमा, आत्मबल और सामाजिक समानता से जोड़कर देखती हैं। ऐसे शिक्षक प्रशासनिक ढांचे को मजबूती देते हैं। उनका योगदान प्रेरणास्पद और उत्साहवर्धन के योग्य है। अध्यक्षता कर रहे जिला मिशन समन्वयक रेखराज शर्मा ने कहा कि डेमेश्वरी जी ने निजी अवसरों को सामाजिक दायित्व में बदलकर सभी शिक्षकों को एक नई राह दिखाई है। कार्य शिक्षकों के लिए प्रेरणा है। वे सरकारी व्यवस्था में रहकर मानवीय संवेदना का उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं। बीआरसीसी जागेश्वर सिन्हा ने बताया कि वर्ष 2022 में स्कूल की दर्ज संख्या 75 थी लेकिन उपस्थिति बहुत कम थी। डेमेश्वरी मैडम के मार्गदर्शन में शिक्षकों की टीम ने घर-घर जाकर पालकों से संवाद किया, घुमंतू समुदाय के बच्चों को स्कूल से जोड़ा और शिक्षा के प्रति भरोसा जगाया। आज इसी विद्यालय में दर्ज संख्या 98 पहुंच चुकी है और नब्बे फीसदी की औसत उपस्थिति है, यह सब शिक्षकों के समर्पण और सेवाभाव से ही संभव हो सका है। प्रधान पाठक डेमेश्वरी गजेंद्र ने कहा कि मैं चाहती हूं कोई बच्चा सिर्फ इसलिए न पिछड़े क्योंकि उसके पास संसाधन नहीं हैं। माँ की ममता और शिक्षक की दृष्टि के साथ हर विद्यार्थी को संबल देना मेरी ज़िम्मेदारी है।
कार्यक्रम में आशीबाई गोलछा कन्या हायर सेकंडरी स्कूल के प्राचार्य जीएल सिन्हा, मिडिल स्कूल के प्रधान पाठक गैंदलाल साहू, उमादेवी शर्मा, सार्थक गजेंद्र, शाला विकास एवं प्रबंधन समिति के अध्यक्ष सुशील कुल्हडिया, उपाध्यक्ष रेवती यादव, सदस्य ज्वाला सूर्यवंशी, शांति साहू के साथ शिक्षक चंचला गुप्ता, लता वैष्णव, ममता डड़सेना, खेमिन साहू, कल्याणी फेकर आदि विशेष रूप से मौजूद रहे।
पहले भी देती रही हैं बेल्ट, रिबन, पेंसिल बॉक्स
डेमेश्वरी गजेंद्र ने बच्चों में एकरूपता और आत्मबल के लिए पूर्व वर्षों में भी लगातार निजी व्यय से सामग्री प्रदान की है। उन्होंने यूनिफॉर्म का बेल्ट, रिबन, पेंसिल बॉक्स, कॉपियां, पेन, बिस्कुट और टॉफियां अपने वेतन से खरीद कर बांटीं हैं। उनका प्रयास रहा कि बच्चे संसाधनों की कमी के कारण कभी शर्मिंदगी या हीन भावना न महसूस करें। इन उपहारों से बच्चों का विद्यालय के प्रति लगाव बढ़ा और उनकी उपस्थिति में उल्लेखनीय सुधार देखा गया।