
सदी परिवर्तन के ठीक दस महीने बाद, अर्थात 1 नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़ ने मध्यप्रदेश से अलग होकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई। तब यह एक नई प्रशासनिक इकाई का गठन ही नहीं था, उस लंबे आंदोलन की परिणति भी थी, जिसमें इस माटी के लोगों ने अपने स्वाभिमान, अपनी संस्कृति और अपने संसाधनों पर अधिकार की मांग की थी। आज जब राज्य अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर रहा है, यह उत्सव के साथ आत्ममंथन का भी अवसर है। यह विचार करने का समय है कि छत्तीसगढ़ ने क्या पाया, क्या खोया और अब उसे किस दिशा में आगे बढ़ना है।
गठन के समय उम्मीदें बड़ी थीं। यह प्रदेश जल, जंगल और जमीन से समृद्ध और विकास की मुख्यधारा से वंचित था। लोगों का विश्वास था कि छोटा राज्य होने के कारण प्रशासन अधिक संवेदनशील और जवाबदेह बनेगा। योजनाएं स्थानीय जरूरतों के अनुसार तैयार होंगी और समाज के प्रत्येक वर्ग को उसकी हिस्सेदारी मिलेगी। बीते पच्चीस वर्षों में यह विश्वास काफी हद तक साकार हुआ है। राज्य ने आर्थिक विकास की राह पर तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है, साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं का भी विस्तार हुआ है।
बुनियादी सुविधाओं में विस्तार
वर्ष 2024–25 में छत्तीसगढ़ की विकास दर लगभग 10.9% रही, जबकि राष्ट्रीय वृद्धि दर करीब 6.5% थी। स्थापना के समय जब बजट कुछ हज़ार करोड़ का था, तो अब यह लाख करोड़ के स्तर पर पहुंच चुका है। हाल ही में राज्य को 6.75 लाख करोड़ से अधिक के औद्योगिक निवेश प्रस्ताव मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि निवेशकों की दृष्टि में छत्तीसगढ़ अब एक आकर्षक गंतव्य बन चुका है। ग्रामीण इलाकों में भी बुनियादी सुविधाओं का तेजी से विस्तार हुआ है। जंगल और दुर्गम क्षेत्रों तक पहली बार बिजली पहुँची है।
सामाजिक और आर्थिक असमानता
धान के कटोरे के रूप में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ ने कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। समर्थन मूल्य की नीतियों, सिंचाई सुविधाओं और कृषि प्रोत्साहन योजनाओं ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है। उद्योग और बिजली उत्पादन में राज्य ने देश में अग्रणी स्थान बनाया है। भिलाई, कोरबा और रायगढ़ जैसे औद्योगिक केंद्रों के साथ छोटे शहरों ने भी छत्तीसगढ़ को आर्थिक मानचित्र पर स्थापित किया है। सड़क, बिजली और संचार नेटवर्क के विस्तार से शहरीकरण की गति बढ़ी है। हालांकि, इस औद्योगिक विकास के साथ कुछ गंभीर चुनौतियां भी उभरी हैं। पर्यावरण का क्षरण, हजारों परिवारों का विस्थापन और माओवाद जैसी समस्याएं राज्य की प्रगति में बाधक बनीं। यद्यपि अब इन चुनौतियों के समाधान की दिशा में राज्य अग्रसर है, परंतु यह विडंबना बनी हुई है कि जितनी समृद्ध राज्य की प्राकृतिक संपदा है, उतनी ही गहरी उसकी सामाजिक और आर्थिक असमानता भी है।
कांग्रेस और भाजपा की सरकार
राजनीतिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ ने स्थिरता और बदलाव, दोनों देखे हैं। बीते पच्चीस वर्षों में भाजपा ने चार बार और कांग्रेस ने दो बार शासन किया। भाजपा के शासनकाल में छत्तीसगढ़ मॉडल के तहत राशन, सड़क, बिजली और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं पर जोर दिया गया। जनता को योजनाओं की नियमितता और सेवा-सुगमता से राहत मिली, लेकिन माओवाद, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे कायम रहे। कांग्रेस ने प्रशासनिक ढांचे को सुदृढ़ करने और ग्रामीण विकास व सामाजिक कल्याण की दिशा में पहल की। किसानों की कर्जमाफी, महिला सशक्तिकरण और स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहन देने वाली योजनाओं ने जनता के भीतर नई उम्मीदें जगाई हैं। छत्तीसगढ़ की बोली और संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। दोनों दलों के बीच सत्ता परिवर्तन लोकतंत्र के स्वस्थ संकेत हैं, पर अब राजनीति को व्यक्ति या दल नहीं, नीति और दृष्टि पर केंद्रित होना होगा।
समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक
छत्तीसगढ़ के भविष्य की कुंजी इस बात में निहित है कि वह अपने प्राकृतिक और मानव संसाधनों का उपयोग कितनी संवेदनशीलता से करता है। उद्योग और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना, युवाओं के लिए रोजगार सृजित करना, शिक्षा को तकनीकी और व्यावहारिक बनाना, तथा आदिवासी इलाकों को विकास की प्रक्रिया में समान रूप से शामिल करना यही अगले 25 वर्षों की दिशा तय करेंगे। राज्य को अब ऐसी नीतियों की आवश्यकता है जो आंकड़ों में नहीं, जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाए। पच्चीस वर्षों की यह यात्रा उपलब्धियों और अपूर्णताओं, दोनों का संगम रही है। जहां एक ओर आर्थिक और निवेश स्तर पर उल्लेखनीय प्रगति हुई है, वहीं सामाजिक व मानवीय विकास की गति अभी स्थिर नहीं हुई है। अब यह समय पारदर्शी और दूरगामी नीति-निर्माण के साथ आगे बढ़ने का है। यही वह दिशा होगी जो छत्तीसगढ़ को वास्तविक अर्थों में समान अवसरों, समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक बनाएगी।
और अंत में…
अब यह नई पीढ़ी और हर नागरिक का समय है, जो नए छत्तीसगढ़ का स्वप्न देखे और उसे साकार करने में अपनी भूमिका निभाए। रजत जयंती से स्वर्ण जयंती की ओर यह यात्रा तभी सार्थक होगा, जब विकास की यह रोशनी हर घर, हर गांव और हर समुदाय तक पहुंचे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुभवी मीडिया विश्लेषक और सामाजिक–राजनीतिक विषयों पर गहन दृष्टिकोण रखने वाले चिंतक हैं।)
चक्रवात “मोंथा” अब डिप्रेशन बना, छत्तीसगढ़ के दक्षिणी हिस्सों में भारी बारिश की संभावना





