दुनिया बदलने के योग्य किस क्षमता को अपनाने की बात कह रहे वरिष्ठ पत्रकार डॉ नीरज गजेंद्र

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डॉ. नीरज गजेंद्र
Dr. Neeraj Gajendra

श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते, अर्थात इस संसार में ज्ञान के समान कोई पवित्र वस्तु नहीं है। जब कोई अपनी आत्मशक्ति को पहचानता है, तो वह सबसे बड़ा ज्ञान प्राप्त करता है। वास्तव में आपने कभी सोचा है कि आप वह क्यों नहीं कर पा रहे, जो आप करना चाहते हैं। क्या कारण है कि कुछेक लोग सीमित साधनों में भी असाधारण उपलब्धियां हासिल कर लेते हैं, और अधिकांश सब कुछ होते हुए भी ठहर सा जाते हैं। इसका उत्तर छिपा है अपनी क्षमता की पहचान में।

अरस्तु ने कहा था Knowing yourself is the beginning of all wisdom. अर्थात यदि आप स्वयं को जान लें, तो हर ज्ञान स्वयं चलकर आपके पास आता है। यही विचार भारतीय दर्शन और पुराणों में भी गहराई से प्रतिध्वनित होता है। श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत यानी स्वयं के द्वारा स्वयं का उद्धार करें। आत्मा की शक्ति को जानिए, उसे कमजोर मत बनने दीजिए।

आधुनिक प्रेरक वक्ताओं में स्टीव जॉब्स का एक कथन बहुत प्रसिद्ध है Your time is limited, so don’t waste it living someone else’s life. उनका कहना था कि जीवन सीमित है और उसे जीने के लिए दूसरों की राहों की नकल नहीं की जा सकती। यह दर्शन इस बात की ओर संकेत करता है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक अद्वितीय सामर्थ्य है, जिसे समझकर यदि वह चल पड़े, तो संसार की कोई शक्ति उसकी सफलता को रोक नहीं सकती।

महाभारत में एकलव्य एक ऐसा पात्र है, जिसने अपनी क्षमता को पहचाना और गुरु द्रोणाचार्य से वंचित होने के बावजूद स्वयं को धनुर्विद्या में पारंगत कर लिया। उसका समर्पण और आत्मबल उसे अर्जुन जैसा महान योद्धा बना सकता था, यदि उसे अवसर मिलता। यह उदाहरण इस बात को बल देता है कि आपके भीतर जो क्षमता है, वह बाहरी समर्थन के अभाव में भी उजागर हो सकती है, बशर्ते आप उस पर विश्वास करें।

कर्ण का जीवन भी इसी दर्शन का दूसरा पहलू दिखाता है। वह सूर्यपुत्र था, लेकिन सूतपुत्र कहकर समाज ने उसे तिरस्कृत किया। किंतु उसकी प्रतिभा, उसका आत्मबल और भगवान परशुराम से प्राप्त शिक्षा उसे रणभूमि में महान योद्धा बना देती है। यह बताता है कि यदि कोई अपनी शक्ति को पहचान ले और उसे सही दिशा दे, तो वह समाज की संकीर्ण सीमाओं को भी तोड़ सकता है।

आज का युग स्पर्धा का है, लेकिन यह स्पर्धा बाहर नहीं, भीतर होनी चाहिए। खुद से पूछना चाहिए कि क्या मैं अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग कर रहा हूं। क्या मैं अपनी राह जान पाया हूं। यदि नहीं, तो आज से शुरुआत कीजिए। क्योंकि जैसे ही आप खुद को जानने लगते हैं, वैसा कोई दूसरा नहीं होता। हर विचारक और हर शास्त्र हमें देता आया है। खुद को जानो, खुद पर विश्वास करो, और फिर जो चाहो, उसे प्राप्त कर लो।

स्वयं से आरंभ होती है प्रेम की शिक्षा यात्रा – डॉ. नीरज गजेंद्र

 

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