स्वयं से आरंभ होती है प्रेम की शिक्षा यात्रा – डॉ. नीरज गजेंद्र

कोई किसी को सिखा नहीं सकता, जब तक स्वयं में सीखने की इच्छा न जगे। यह वाक्य नैतिक उपदेश नहीं, सनातन जीवन-दर्शन का सार है। यह मनोविज्ञान और जीवन के अनुभवों की कसौटी पर खरा उतरने वाला शास्त्रों और पुराणों का उद्घोष है। शिक्षा सिर्फ सूचनाओं का हस्तांतरण नहीं है, यह एक आंतरिक जागृति है। जब तक जिज्ञासा भीतर से न जगे, तब तक कोई सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। यही बात प्रेम पर भी लागू होती है। प्रेम एक शिक्षक है। धीमा, मौन और गहरा, इसे न तो कोई ज़बरदस्ती दे सकता है, न कोई छीन सकता है। यह केवल अर्जित किया जा सकता है श्रम पूर्वक और धैर्यपूर्वक।

भगवान शिव को आदियोगी कहा गया है। वे ज्ञान के पहले स्रोत हैं। शास्त्र बताते हैं कि उन्हें किसी गुरु ने योग नहीं सिखाया। उन्होंने स्वयं हिमालय की तपस्थली में बैठकर अपने भीतर की चेतना से संवाद किया। उनकी मौन साधना और गहन आत्म-निरीक्षण से ही सप्तर्षियों को ज्ञान प्राप्त हुआ। यह कथा बताती है कि सच्चा शिक्षक स्वयं का आत्मबोध होता है। जब भीतर प्रश्न उठते हैं, तभी उत्तर भी प्रकट होते हैं।

शबरी एक वनवासी महिला थी। जिसने किसी वेद को नहीं पढ़ा, जिसे किसी गुरु ने स्वीकार नहीं किया। पर उसने प्रेम के बल पर भगवान राम को प्राप्त किया। उसने वर्षों तक राम के आगमन की प्रतीक्षा की, जंगल के फल को चख कर रखा कि कहीं वह खट्टा न हो। शबरी को किसी ने रामभक्ति नहीं सिखाई। न ही वह किसी शास्त्रीय पूजा-पद्धति से जुड़ी थी। लेकिन उसकी निष्कलंक भावना, सेवा और प्रतीक्षा ने उसे वह बना दिया, जो ऋषियों को भी दुर्लभ था। राम के साक्षात् सान्निध्य की यह पात्र प्रेम की शिक्षा का सर्वोच्च उदाहरण है। बिना दिखावे, बिना ज्ञान के उसने हृदय से साधन कर स्वयं को शिक्षा दी।

तंत्र ग्रंथों में वर्णित है कि जब तक साधक अपनी कुण्डलिनी शक्ति को स्वयं नहीं जाग्रत करता, तब तक वह ब्रह्मज्ञान तक नहीं पहुंच सकता। गुरु मार्ग दिखा सकता है, परंतु साधना स्वयं करनी होती है। आत्मप्रेम इस शिक्षा का प्रथम चरण होता है, जिससे अपने ही दोषों, वासनाओं और विचारों से जूझकर व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करता है।

आज के युग में आत्मप्रेम को मानसिक स्वास्थ्य का मूल आधार माना जा रहा है। क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. क्रिस्टिन नेफ का सेल्फ कंम्पोज़िसन शोध बताता है कि जो लोग स्वयं को स्वीकारते हैं, गलतियों पर कठोर नहीं होते और स्वयं के प्रति करुणामय दृष्टिकोण रखते हैं वे अधिक संतुलित और सहनशील होते हैं। उदाहरण के लिए, जाने-माने टेनिस खिलाड़ी आंद्रे अगासी ने अपनी आत्मकथा ओपन में स्वीकार किया है कि उन्होंने वर्षों तक टेनिस को नापसंद किया, पर जब उन्होंने स्वयं से संवाद करना सीखा, अपने भीतर के द्वंद्वों को समझा, तभी वे एक बार फिर खेल से प्रेम कर पाए और अपने करियर को नई दिशा दे पाए।

यह शिक्षा किसी स्कूल या पाठ्यक्रम से नहीं मिलती। यह अनुभवों से आत्मचिंतन से और स्वयं को स्वीकारने की प्रक्रिया से उपजती है। जो व्यक्ति स्वयं से सीखता है, वह धीरे-धीरे दुनिया को बदलने की क्षमता रखता है।

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