मानसून का पहले आना, देता है ये संदेश, नुकसान या फायदा?

early arrival of monsoon

मानसून 2025: जून में एंट्री होने वाले मानसून इस बार 8 दिन पहले ही आ गया। इसका भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने खुलासा कर दी है। इस साल 2025 में मानसून 24 मई को केरल पहुंच गया, जबकि अधिकांशत: मानसून एक जून के बाद आती है। अब  सवाल उठता है कि मानसून जल्दी कैसे पहुंच गया।? अब हमारे दिमाक में सवाल उत्पन्न हो रहा है कि इसका फायदा मिलेगा या नुकसान उठाना पड़ेगा?

ऐसे पता चला मानसून आने की खबर

बता दें, मौसम विभाग (IMD) मानसून की घोषणा करने के लिए कुछ वैज्ञानिक मानकों का पालन करता है. इनमें से एक यह है कि केरल और आसपास के इलाके में 14 तय मौसम केंद्रों में से कम से कम 60 फीसदी पर लगातार दो दिनों तक 2.5 MM या उससे ज्यादा बारिश हो. इसके साथ ही पश्चिमी हवा 15-20 नॉट की स्पीड से चलनी चाहिए. इसके अलावा एक विशेष क्षेत्र में आउटगोइंग लॉन्गवेव रेडिएशन (ओएलआर) का स्तर 200 W/m² से कम होना चाहिए. इस बार इन सभी मानदंडों पूरा होने के कारण मानसून की घोषणा आधिकारिक रूप से कर दी गई.

समय से 8 दिन पहले आया

इस बार केरल में मानसून तय सीमा से पूरे आठ दिन पहले आया है. इससे पहले पिछले सप्ताह ही आईएमडी (IMD) ने अनुमान जताया था कि 27 मई के आसपास मानसून की एंट्री हो सकता है. इसमें 4 दिन पहले या बाद का अंतर आ सकता है. विभाग की भविष्यवाणी इस बार सही साबित हुई.

साल 2009 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि मानसून इतनी जल्दी भारत पहुंचा है. इसकी दस्तक के साथ ही केरल के कई हिस्से में भारी बारिश शुरू हो गई है. वैसे IMD के आंकड़ों की मानें तो पिछले 150 सालों में मानसून के केरल में दस्तक देने की तारीखें काफी अलग-अलग रही हैं. साल 1918 में मानसून ने रिकॉर्ड रूप से सबसे पहले 11 मई को केरल में दस्तक दे दी थी. वहीं, साल 1972 में यह केरल सबसे अधिक देरी से 18 जून को पहुंचा था.

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मानसून के लिए जिम्मेदार होती हैं ये दो स्थितियां

वास्तव में मानसून और बारिश के लिए दो स्थितियां (पैटर्न) जिम्मेदार होती हैं. इनमें एक है अल नीनो और दूसरी ला नीना. अल नीनो (La Niña. El Niño) में समुद्र का तापमान तीन से चार डिग्री तक बढ़ जाता है. आमतौर पर इस स्थिति का प्रभाव 10 साल में दो बार देखने को मिलता है. इसका प्रभाव यह होता है कि ज्यादा बारिश वाले इलाकों में कम बारिश और कम बारिश वाले क्षेत्रों में अधिक बारिश होती है. दूसरी ओर, ला नीना में समुद्र का पानी खूब तेजी से ठंडा होने के कारण दुनिया भर के मौसम पर सकारात्मक असर पड़ता है. इससे बादल छाते हैं और बेहतर बारिश होती है.

भारत में इस बार इसलिए जल्दी पहुंचा मानसून

भारत में इस बार जल्दी मानसून (monsoon) आने का मुख्य कारण अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में नमी का बढ़ना है. इसी दौरान समुद्र का टेम्प्रेचर सामान्य से अधिक रहा, जिसके कारण मानसूनी हवाएं तेजी से सक्रिय हो गईं. फिर पश्चिमी हवाएं चलीं और चक्रवाती हलचलों ने भी मानसून को बढ़ने में मदद की. इसके अलावा दुनिया भर में होने वाला जलवायु परिवर्तन भी मौसम के इस पैटर्न में बदलाव का एक बड़ा कारण बन रहा है.

जल्दी आना, जल्दी जाने की गारंटी नहीं

केरल में जब मानसून (monsoon) की शुरुआत होती है, तो इसके बाद यह धीरे-धीरे उत्तर दिशा में बढ़ता है. फिर जून का अंत तक आते-आते यह देश के ज्यादातर हिस्से पर छा जाता है. सामान्य तौर पर जुलाई के मध्य तक देश के सभी हिस्सों में मानसून पहुंच जाता है. हालांकि, मानसून का जल्दी आना इस बात की गारंटी नहीं होती कि वह जल्द ही खत्म भी हो जाएगा. यह सब मौसम की अलग-अलग कई जटिल प्रक्रियाओं पर निर्भर होता है. इनमें सबसे अहम है अरब सागर के साथ ही बंगाल की खाड़ी में समुद्र का तापमान, हवा का दबाव और दुनिया भर के मौसम का पैटर्न.

बढ़िया गति पर निर्भर करती है बारिश

मानसून (monsoon) अगर देश में समय से पहले आ जाए और उसकी गति भी अच्छी बनी रहे, तो पूरे देश में सामान्य अथवा अच्छी बारिश हो सकती है. वहीं, मानसून अगर जल्दी आकर धीमा या फिर कमजोर हो जाए, तो बारिश में कमी भी हो सकती है. इसलिए मानसून जल्दी आना अच्छी बारिश का संकेत नहीं है और न ही देर से आना कम बारिश का संकेत है. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मानसून देर से आता है. इसके बावजूद स्थितियां अच्छी बनी रहने से लंबे समय तक टिका रहता है और अच्छी बारिश होती है.

किसानों को मिलेगी फायदा

मानसून (monsoon)  जल्दी आना न तो यह दर्शाता है कि इससे फायदा होगा न ही यह दर्शाता है कि इससे नुकसान होगा. हालांकि, देश के ज्यादातर हिस्सों में अब तक चिलचिलाती धूप और भीषण गर्मी नहीं पड़ने से खेतों की नमी नहीं सूखी है. ऐसे में खेतों में बीज जल्दी बोए जा सकेंगे. अगर मानसूनी बारिश होती रही तो फसलों को पर्याप्त पानी मिलता रहेगा और उपज अच्छी होगी.

मौसम विभाग ने इस बार अप्रैल में ही कहा था कि साल 2025 के मानसून सीजन के दौरान किसी तरह से अल नीनो की कोई संभावना नहीं है. ऐसे में इस साल सामान्य से अधिक बारिश की संभावना है. फिलहाल देश में कम बारिश की आशंका नहीं के बराबर है. ऐसे ही साल 2023 में जब अल नीनो सक्रिय हुआ था, तब मानसून के सीजन में सामान्य से छह फीसदी तक कम बारिश हुई थी.

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