पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र का लिखा- रेवड़ी बाजार में भटक रहा भारत का भविष्य

sitename%डॉ. नीरज गजेंद्र| सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त योजनाओं यानि रेवड़ी संस्कृति पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकारें नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाने के बजाय परजीवी बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं। यह टिप्पणी तब आई जब अदालत शहरी बेघर लोगों को आश्रय देने की योजनाओं पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने सवाल उठाया कि क्या सरकारें मुफ्त योजनाओं के जरिए लोगों को स्वावलंबी बनाने के बजाय उन्हें निर्भरता की ओर धकेल रही हैं। यह बहस इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कई राज्य विशेष रूप से तमिलनाडु और दिल्ली लगातार इस राजनीति को बढ़ावा देते आ रहे हैं, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो रही है।

तमिलनाडु देश का वह राज्य है जिसने मुफ्त योजनाओं की राजनीति को सबसे पहले अपनाया। 1967 में डीएमके सरकार ने मुफ्त चावल योजना शुरू की, जिसे बाद में एआईएडीएमके ने विस्तार दिया। धीरे-धीरे इसमें लैपटॉप, मिक्सर-ग्राइंडर, टीवी और यहां तक कि सोने की चूड़ियां भी शामिल कर दी गईं। इन योजनाओं से जनता को तात्कालिक राहत जरूर मिली, लेकिन राज्य की वित्तीय स्थिति पर गंभीर असर पड़ा। 2023 में ही तमिलनाडु सरकार पर करीब 7 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था, जिसका बड़ा हिस्सा मुफ्त योजनाओं के कारण बढ़ा। इसी तरह दिल्ली सरकार ने 2015 के बाद बिजली, पानी और बस यात्रा को मुफ्त कर दिया। जनता को राहत मिली, लेकिन सरकार का राजस्व मॉडल दबाव में आ गया। बिजली कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ बढ़ता गया। वित्तीय असंतुलन पैदा हुआ। इन योजनाओं से जनता को तात्कालिक लाभ जरूर हुआ।  लेकिन क्या ये नीतियां देश की आर्थिक स्थिरता के लिए सही दिशा में जा रही हैं। पंजाब में मुफ्त बिजली देने के बाद 2023 में बिजली कंपनियां दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गईं। यही स्थिति दिल्ली और अन्य राज्यों में भी देखी जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि मुफ्त योजनाओं की नीति सरकारों के लिए आसान रास्ता हो सकता है, लेकिन इससे जनता को आत्मनिर्भर नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या मुफ्त सुविधाएँ देकर जनता को समाज की मुख्यधारा में लाने के बजाय एक परजीवी मानसिकता विकसित नहीं की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट का यह बयान महज कानूनी हस्तक्षेप नहीं, बल्कि एक गहरी आर्थिक और सामाजिक चेतावनी है। सरकारों को ऐसी योजनाए लानी चाहिए जो जनता को आत्मनिर्भर बनने में मदद करें। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश और गुजरात ने कौशल विकास योजनाएं शुरू कीं, जिससे लाखों युवाओं को रोजगार मिला। बिहार सरकार ने स्टार्टअप नीति के तहत 10,000 से अधिक नए उद्यमियों को सहायता दी, जिससे वे अपने पैरों पर खड़े हो सके।

जब सरकारें चुनावी फायदे के लिए मुफ्त योजनाएं लागू करती हैं, तो इसका वित्तीय बोझ पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इन योजनाओं को लागू करने के लिए सरकार को उधारी लेनी पड़ती है, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ता है। यदि यह प्रवृत्ति बढ़ती रही, तो सरकारों के पास बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश करने के लिए संसाधन नहीं बचेंगे। उदाहरण के लिए श्रीलंका में इसी प्रकार की मुफ्त योजनाओं के कारण अर्थव्यवस्था चरमरा गई और 2022 में उसे दिवालिया घोषित करना पड़ा। ग्रीस ने भी दशकों तक मुफ्त सेवाएँ दीं, लेकिन अंततः उसे 2010 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेना पड़ा। अगर भारत में भी यही नीति जारी रही, तो आर्थिक संकट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

चुनावी राजनीति में मुफ्त योजनाओं का मुद्दा लगातार गरमाया रहता है। कई राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए बिना किसी ठोस वित्तीय योजना के मुफ्त सुविधाओं का वादा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में यह प्रश्न उठाया गया है कि क्या इन वादों को रिश्वत के रूप में देखा जाना चाहिए। चुनाव आयोग ने 2022 में कहा था कि वह राजनीतिक दलों की नीतियों को नियंत्रित नहीं कर सकता। लेकिन क्या लोकतंत्र में ऐसी लोकलुभावन नीतियों पर अंकुश लगाने की जरूरत नहीं है।  अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या चुनावों से पहले राजनीतिक दलों को मुफ्त योजनाओं के वित्तीय स्रोत की जानकारी सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों से यह स्पष्ट है कि मुफ्त योजनाओं पर पुनर्विचार आवश्यक है। राज्य की भूमिका केवल सहायता प्रदान करने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी काम करना चाहिए। सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने संसाधनों का उपयोग इस तरह करें कि समाज का वास्तविक विकास हो, न कि केवल अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए मुफ्त योजनाओं की बाढ़ आ जाए। तमिलनाडु और दिल्ली के साथ कुछ और राज्यों के उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि अगर मुफ्त योजनाओं पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो देश आर्थिक संकट की ओर बढ़ सकता है। समय आ गया है कि जनता भी यह समझे कि राजनीति में मुफ्त की सुविधा का वादा जितना आकर्षक लगता है, उतना ही घातक भी हो सकता है।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र ने छत्तीसगढ़ की किस व्यवस्था पर कहा- काठा की लागत और गाड़ा भर समृद्धि

ये भी पढ़ें...

webmorcha.com

मंत्री OP चौधरी का एक्शन, पूर्व मंत्री अकबर के भाई के 218 करोड़ के 10 टेंडर निरस्त, घटिया निर्माण व लेटलतीफी पर कार्रवाई

आलेखछत्तीसगढ़डॉ. नीरज गजेंद्रमुफ्त की योजनारेवडी बाजारलेखवरिष्ठ पत्रकारसुप्रीम
webmorcha.com

महासमुंद कोमाखान पुलिस 48 लाख का गांजा पकड़ा, चकमा देने डिक्की के नीचे बक्सानुमा चेम्बर बनाकर ले जा रहा था गांजा

आलेखछत्तीसगढ़डॉ. नीरज गजेंद्रमुफ्त की योजनारेवडी बाजारलेखवरिष्ठ पत्रकारसुप्रीम
webmorcha.com

छत्तीसगढ़ CM से मारवाड़ी युवा मंच के सदस्यों ने की भेंट, रामलला प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर मंच द्वारा किया जाएगा दीप वितरण

आलेखछत्तीसगढ़डॉ. नीरज गजेंद्रमुफ्त की योजनारेवडी बाजारलेखवरिष्ठ पत्रकारसुप्रीम
webmorcha.com

मंत्री OP चौधरी का एक्शन, पूर्व मंत्री अकबर के भाई के 218 करोड़ के 10 टेंडर निरस्त, घटिया निर्माण व लेटलतीफी पर कार्रवाई

आलेखछत्तीसगढ़डॉ. नीरज गजेंद्रमुफ्त की योजनारेवडी बाजारलेखवरिष्ठ पत्रकारसुप्रीम
webmorcha.com

महासमुंद कोमाखान पुलिस 48 लाख का गांजा पकड़ा, चकमा देने डिक्की के नीचे बक्सानुमा चेम्बर बनाकर ले जा रहा था गांजा

आलेखछत्तीसगढ़डॉ. नीरज गजेंद्रमुफ्त की योजनारेवडी बाजारलेखवरिष्ठ पत्रकारसुप्रीम
webmorcha.com

छत्तीसगढ़ CM से मारवाड़ी युवा मंच के सदस्यों ने की भेंट, रामलला प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर मंच द्वारा किया जाएगा दीप वितरण

आलेखछत्तीसगढ़डॉ. नीरज गजेंद्रमुफ्त की योजनारेवडी बाजारलेखवरिष्ठ पत्रकारसुप्रीम
Edit Template