14 जून को विश्व रक्तदान दिवस पर जब देशभर में रक्तदान को लेकर जागरूकता फैलाने की बात होती है, तो ऐसे लोगों को याद करना जरूरी हो जाता है जिन्होंने सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि कर्मों से रक्तदान को जीवन का उद्देश्य बना लिया। ऐसे ही एक प्रेरक और संवेदनशील व्यक्तित्व हैं महासमुंद कलार समाज के जिलाध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र, जिन्होंने अब तक 71 बार रक्तदान कर, न जाने कितनों को मौत के मुंह से निकाल कर नया जीवन दिया।
सामाजिक और जन-सरोकारों से जुड़े डॉ. नीरज बताते हैं कि उन्होंने रक्तदान की शुरुआत वर्ष 1994 में की थी। उस वक्त की एक घटना ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। उनके पिता श्री द्वारिकाचरण गजेंद्र की तबीयत अचानक खराब हो गई थी और चिकित्सकों ने A+ ब्लड की व्यवस्था तत्काल करने को कहा। पूरे रायपुर के ब्लड बैंकों में जब रक्त नहीं मिला, तब डॉक्टरों ने कहा अगर खून के रिश्ते वाला रक्तदान करे तो बेहतर रहेगा, वरना हम रिक्शेवालों या हमालों से रक्त की व्यवस्था करेंगे। इस बात ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया। उन्होंने उसी क्षण निर्णय लिया जब मेरे शरीर में बह रहा खून खुद मेरे पिता का ही अंश है, तो फिर यह रक्त उन्हें देने में संकोच कैसा।
बस, यहीं से रक्तदान का वह संकल्प शुरू हुआ, जो अब तक 71 बार दोहराया जा चुका है। सार्वजनिक जीवन में सक्रिय होने के कारण डॉ. नीरज से अक्सर लोग आपात स्थिति में रक्त की व्यवस्था के लिए संपर्क करते हैं। वे बताते हैं कि कई बार अस्पतालों के बाहर खड़े बेसहारा परिजन जब मुझे कॉल करते हैं, तो मैं न समय देखता हूं, न थकावट केवल उस ज़रूरतमंद की आंखों में उम्मीद देखता हूं।
रक्तदान को लेकर लोगों में फैली भ्रांतियों को दूर करते हुए वे कहते हैं रक्तदान से कमजोरी नहीं आती, बल्कि यह शरीर को नए रक्त निर्माण के लिए प्रेरित करता है और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी भी होता है। वे युवाओं से विशेष आग्रह करते हैं कि कम से कम वर्ष में दो बार रक्तदान करें, ताकि देश में किसी को रक्त की कमी के कारण जान न गंवानी पड़े।
दुनिया बदलने के योग्य किस क्षमता को अपनाने की बात कह रहे वरिष्ठ पत्रकार डॉ नीरज गजेंद्र