डॉ नीरज गजेंद्र किस द्वैत प्रवृत्ति को सत्य की अग्नि में जलाने की बात कह रहे, पढ़िए यहां

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जब दशहरे आता है। गांव–शहर में रावण का विशालकाय पुतला खड़ा किया जाता है। रात ढलते ही उस पर अग्निबाण छोड़ा जाता है। देखते ही देखते लपटों में रावण का अस्तित्व मिट जाता है। असत्य का अंत और सत्य की विजय सामने घटित होता देख लोग उल्लास में झूम उठते हैं। पर सवाल यह है कि क्या सचमुच रावण समाप्त हो गया या वह आज भी हमारी प्रवृत्तियों और आदतों में जिंदा है।

रावण को दशानन यानी दस सिर वाला कहा गया। अलग–अलग ग्रंथों में इसकी व्याख्या भी भिन्न है। कहीं यह दस अवगुणों यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, असंयम, अन्याय और लालच का प्रतीक है। कहीं इसे ज्ञान का रूप माना गया है क्योंकि रावण वेद–शास्त्रों का प्रकांड विद्वान था। कुछ मान्यताएं कहती हैं कि उसके सिर में दस प्रकार के दिमाग थे। परंतु इन तमाम व्याख्याओं से परे एक सच्चाई है रावण का दशानन होना, यह मनुष्य के भीतर की द्वैत प्रवृत्ति का प्रतीक है। एक ओर अपार ज्ञान और सामर्थ्य, दूसरी ओर अहंकार और वासना। यही विरोधाभास उसका पतन लेकर आया, आशय यह कि व्यक्ति को एकाग्र होना चाहिए।

राम और रावण का युद्ध दो व्यक्तियों का संघर्ष नहीं था, बल्कि धर्म और अधर्म, संयम और असंयम, मर्यादा और अहंकार का युद्ध था। रावण के सिर बार–बार उगते थे, जैसे हमारे भीतर दोष बार–बार लौट आते हैं। जब तक राम ने उसकी नाभि में छिपे अमृतकुंड को लक्ष्य नहीं किया, तब तक उसका अंत नहीं हुआ। यह प्रतीक है कि अवगुणों को जड़ से खत्म करना आवश्यक है। वरना वे समय–समय पर फिर सिर उठाते रहते हैं।

आज दशहरे का पर्व हमें याद दिलाता है कि सिर्फ पुतले जलाना पर्याप्त नहीं। यह दिन आत्मचिंतन का है। हमारे भीतर भी एक छोटा सा रावण छिपा होता है, जो बाहर से नहीं दिखता, पर भीतर काम, क्रोध, लोभ और अहंकार के रूप में सक्रिय रहता है। बाहर का पुतला तो हर साल जल जाता है, लेकिन भीतर का रावण अक्सर बचा रह जाता है। यही कारण है कि समाज में अन्याय, भ्रष्टाचार और हिंसा बार–बार जन्म लेते हैं।

रावण असाधारण था। अपार ज्ञान, तपस्या और शक्ति से संपन्न था। चारों वेद और छह शास्त्र जिसके मस्तिष्क में बसे हों, ऐसा महापंडित दूसरा कोई नहीं हुआ। परंतु उसके भीतर का अहंकार और वासना ही उसके विनाश का कारण बने। संदेश स्पष्ट है कि ज्ञान और शक्ति तभी सार्थक हैं जब वे विनम्रता और मर्यादा से जुड़े हों।

आज के युग में यह संदेश और भी प्रासंगिक है। आज तकनीक, संसाधन और अवसर हमारे पास प्रचुर हैं। लेकिन यदि यह सब केवल स्वार्थ, लालच और अनैतिकता के लिए इस्तेमाल होगा तो यही आधुनिक ज्ञान भी रावण की तरह विनाशकारी बन जाएगा। भ्रष्टाचार, हिंसा, पर्यावरण का दोहन और तकनीक का दुरुपयोग ये सब आज के रावण हैं। सफलता केवल धन या पद से नहीं मापी जाती। असली विजय वही है जिसमें ज्ञान के साथ विनम्रता और शक्ति के साथ संयम जुड़ा हो। ज्ञान बड़ा नहीं, उसका सदुपयोग बड़ा है। यही जीवन का सच्चा धर्म है।

दशहरे की रात जब रावण का पुतला जलाएं, तो यह संकल्प भी लें कि अपने भीतर के रावण को भी ज्ञान रूपी अग्नि के हवाले करेंगे।  रामायण हमें यही शाश्वत सत्य सिखाती है कि असत्य कितना भी बड़ा और प्रभावशाली क्यों न हो, सत्य के आगे टिक नहीं सकता। सत्य का दीपक छोटा हो सकता है, लेकिन असत्य का अंधकार उसके सामने टिक नहीं सकता।

डॉ. नीरज बता रहे जीवन में लक्ष्य चाहे बड़ा हो या छोटा साधना से निकलता है उसे पाने का मार्ग

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