बलिदान दिवस पर पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ नीरज गजेंद्र का लिखा- छत्तीसगढ़ के वीरनारायण सिंह केवल अतीत का एक नाम नहीं हैं। वे आज भी प्रासंगिक हैं। उनके आदर्श और विचार हर दौर में महत्वपूर्ण रहेंगे। 10 दिसंबर का बलिदान दिवस केवल उन्हें याद करने का दिन नहीं है। यह उनके आदर्शों को अपनाने और उनके बलिदान को सार्थक बनाने का अवसर है।

वीरनारायण सिंह

वीरनारायण सिंह। यह नाम छत्तीसगढ़ की मिट्टी में साहस, बलिदान और मानवता की खुशबू की तरह बसा है। उनका जीवन केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है। यह शोषण और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की गाथा है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका ने यह साबित किया कि छत्तीसगढ़ की धरती भी आजादी की लड़ाई का एक मजबूत केंद्र रही। उनके संघर्ष और बलिदान की कहानी आज भी हमें सिखाती है कि नेतृत्व का असली मतलब क्या होता है। 1856 का समय था। अंग्रेजी हुकूमत अपने चरम पर थी। किसानों से उनका अनाज छीना जा रहा था। भूख और गरीबी ने लोगों को कमजोर बना दिया था।

सोनाखान के जमींदार वीरनारायण सिंह ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अपने गोदाम का अनाज जरूरतमंदों में बांट दिया। यह कदम अंग्रेजों को नागवार गुजरा। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन वीरनारायण सिंह का साहस कम नहीं हुआ। जेल से निकलने के बाद वे सीधे जनता के बीच पहुंचे। उन्होंने विद्रोह का बिगुल बजाया। अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को संगठित किया। इस विद्रोह ने छत्तीसगढ़ में आजादी की भावना को और मजबूत किया। उनके साहस ने यह दिखा दिया कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही असली नेतृत्व है। 10 दिसंबर 1857 का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। रायपुर के जयस्तंभ चौक पर वीरनारायण सिंह को फांसी दी गई। लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उन्होंने छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी। उनके संघर्ष ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया।

आज जब हम उनके बलिदान को याद करते हैं। यह सोचने पर मजबूर होते हैं। क्या हमारे नेता और नेतृत्वकर्ता उनसे कुछ सीख सकते हैं। वीरनारायण सिंह जमींदार थे। उन्होंने अपनी संपत्ति का उपयोग गरीबों के लिए किया। अधिकार आमजन के हित में होता था। उन्होंने कभी इसे निजी लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं किया। उनके लिए जमींदारी का मतलब था—शोषितों की रक्षा करना। आज राजनीति और सत्ता को अक्सर व्यक्तिगत लाभ का माध्यम माना जाता है। नेता जनता की जरूरतों को भूल जाते हैं। राजनीति में नैतिकता का अभाव दिखता है। कई बार सत्ता में बैठे लोग जनता की जरूरतों को भूल जाते हैं। ऐसे में वीरनारायण सिंह का जीवन एक आदर्श है। उन्होंने सिखाया कि नेतृत्व केवल शासन करने का नाम नहीं है। यह लोगों की सेवा और उनके अधिकारों की रक्षा का माध्यम है। उनका जीवन हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है।

उन्होंने दिखाया कि न्याय और सच्चाई के लिए संघर्ष करना ही असली बलिदान है। आज जब सामाजिक असमानता और अन्याय बढ़ रहे हैं, तो उनका आदर्श और प्रासंगिक हो जाता है। वीरनारायण सिंह ने हमें यह भी सिखाया कि सत्ता का सही उपयोग समाज को सशक्त बनाता है। यदि आज के नेता और अधिकारी उनसे प्रेरणा लें, तो समाज में बड़ा बदलाव आ सकता है। उनकी ईमानदारी, जनता के प्रति निष्ठा और साहस वर्तमान पीढ़ी के लिए सबक है।

छत्तीसगढ़ के वीरनारायण सिंह केवल अतीत का एक नाम नहीं हैं। वे आज भी प्रासंगिक हैं। उनके आदर्श और विचार हर दौर में महत्वपूर्ण रहेंगे। 10 दिसंबर का बलिदान दिवस केवल उन्हें याद करने का दिन नहीं है। यह उनके आदर्शों को अपनाने और उनके बलिदान को सार्थक बनाने का अवसर है। उनके बलिदान को सार्थक बनाने का अवसर है। वीरनारायण सिंह केवल अतीत का एक नाम नहीं हैं। वे हमारे आज और कल के लिए प्रेरणा हैं। उनका जीवन हर युग में प्रासंगिक रहेगा।

ज़िंदगीनामा
पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र

neegaj@gmail.com

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