पढि़ए डॉ नीरज गजेंद्र का जिंदगीनामा- बीज में वृक्ष और विचार में समाहित होता है भविष्य का आकार

विचार से बदलिए भविष्य
sitename%हम जो सोचते हैं, वही बन जाते हैं। यह स्वामी विवेकानंद की वह अमर वाणी है, जिसने न केवल भारत के युवाओं को दिशा दी, बल्कि संपूर्ण मानवता को मानसिक क्रांति की राह दिखाई। हमारे विचार ही हमारे कर्मों का बीज हैं, और कर्म से ही भविष्य की नींव रखी जाती हैं। यदि हम अपने सोचने के ढंग को सुधार लें, तो हमारा व्यक्तित्व, हमारे रिश्ते और हमारा जीवन भी निखरने लगता है। अनुसंधानों की मानें तो मनुष्य का मस्तिष्क दिनभर में हजारों विचार उत्पन्न करता है। एक व्यक्ति के मन में प्रतिदिन औसतन 60 हजार विचार आते हैं, जिनमें से 80 प्रतिशत नकारात्मक और अधिकांश दोहराए जाने वाले होते हैं। यदि हम इन विचारों को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकें, तो यह जीवन के हर क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। जैसे एक बीज धरती में रोपने के बाद उसे जैसे खाद-पानी और देखरेख मिलती है, वैसा ही वह फल देता है। वैसे ही मन में डाले गए विचार हमारे जीवन को आकार देते हैं। यदि विचार सकारात्मक, उत्साहवर्धक और उद्देश्यपूर्ण हों, तो जीवन की दिशा स्वतः ही ऊर्ध्वगामी हो जाती है। हमारे बुजुर्ग अक्सर कहा करते थे, जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन। यह कहावत केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक है। वैज्ञानिकों ने भी यह प्रमाणित किया है कि खान-पान सीधे तौर पर मस्तिष्क की रासायनिक क्रियाओं को प्रभावित करता है। इसके अलावा, हम जिस वातावरण में रहते हैं। जिन लोगों के साथ संवाद करते हैं। जिन बातों को सुनते-पढ़ते हैं, वे सब हमारे विचारों को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि संत महात्मा सत्संग की महत्ता बताते हैं। सकारात्मक संगति से सकारात्मक विचार जन्म लेते हैं। वही विचार आत्मबल बनकर जीवन को दिशा देते हैं। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि आपके विचार ही आपके शब्द बनते हैं। शब्द से कर्म का निर्माण होता है। कर्म से आदतें तैयार होती हैं। आदतों से चरित्र का निर्माण होता है और चरित्र ही आपका भाग्य बनता है। स्वामी विवेकानंद स्वयं एक उदाहरण हैं। बाल्यकाल में असमंजस और प्रश्नों से जूझने वाला वह बालक, श्रीरामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद जब अपनी सोच और दृष्टिकोण को बदला, तो पूरी दुनिया में भारत की आध्यात्मिक छवि को एक नई पहचान दिला दी। आज के युग में जहां सोशल मीडिया, नकारात्मक समाचार, प्रतिस्पर्धा और तनाव चारों ओर व्याप्त हैं। ऐसे में सकारात्मक सोच ही व्यक्ति को सफलता की राह में बनाए रखता है। सफलता की राह में जरूरी है कि हम प्रतिदिन कुछ समय आत्मचिंतन और ध्यान में बिताएं। यह मन को संयमित करता है। प्रेरक किताबें पढ़ें और अच्छे लोगों की संगति करें, इससे विचारों की शुद्धि होती है। हर दिन के लिए कृतज्ञता व्यक्त करने से जीवन के प्रति दृष्टिकोण सकारात्मक होता है। यह भी जरूरी है कि दिन के अंत में कम से कम एक बार यह विचार जरूर करें कि आज हमने किन-किन बातों में सकारात्मक सोचा और कहां सुधार की आवश्यकता है।

विचार ही आत्मा की भाषा हैं। वे केवल मानसिक प्रक्रियाएं नहीं, बल्कि जीवन के निर्माता होते हैं। जिस प्रकार बीज में वृक्ष समाहित होता है, वैसे ही हर विचार में भविष्य का आकार छिपा होता है। सकारात्मक चिंतन केवल सुखद अनुभूति नहीं, बल्कि एक सक्रिय साधना है—जो व्यक्ति को नकारात्मकता से उठाकर आत्मविकास की ओर ले जाती है।

ब्रह्मकाल और ब्रह्मचर्य से मिलने वाले जीवन के उच्चतम शिखर पर पढ़िए पत्रकार डॉ नीरज गजेंद्र का दृष्टिकोण

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