
विचार ही आत्मा की भाषा हैं। वे केवल मानसिक प्रक्रियाएं नहीं, बल्कि जीवन के निर्माता होते हैं। जिस प्रकार बीज में वृक्ष समाहित होता है, वैसे ही हर विचार में भविष्य का आकार छिपा होता है। सकारात्मक चिंतन केवल सुखद अनुभूति नहीं, बल्कि एक सक्रिय साधना है—जो व्यक्ति को नकारात्मकता से उठाकर आत्मविकास की ओर ले जाती है।
ब्रह्मकाल और ब्रह्मचर्य से मिलने वाले जीवन के उच्चतम शिखर पर पढ़िए पत्रकार डॉ नीरज गजेंद्र का दृष्टिकोण