
असंभव कुछ भी नहीं, यह प्रेरणादायक वाक्य ही नहीं, ऐसा सत्य है जिसे समय-समय पर मानव इतिहास ने सिद्ध किया है। जब मनुष्य अपनी संकल्प-शक्ति को जाग्रत करता है और निष्ठा से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है, तब असंभव भी उसके चरणों में झुक जाता है। यह सत्य आधुनिक विज्ञान और तकनीक में परिलक्षित होता है। हमारे पौराणिक और आध्यात्मिक ग्रंथों में भी इसकी पुष्टि होती है।
रामायण में हनुमान जी की कथा स्मरण करें। जब समुद्र पार करने का समय आया, तब जामवंत ने उन्हें उनकी शक्ति का स्मरण कराया। जैसे ही उन्होंने अपने भीतर की शक्ति को पहचाना और निश्चय किया, वे आकाश मार्ग से लंका तक पहुंच गए। एक कथा के रूप में यह घटना दर्शाती है कि आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प से असंभव सी लगने वाली बाधाएं भी पार की जा सकती हैं। महाभारत में अर्जुन को जब मोह और भ्रम ने घेर लिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर पुनः उनके भीतर के योद्धा को जगाया। अर्जुन की सफलता का मूल कारण केवल धनुर्विद्या नहीं, बल्कि उनका निश्चय और कर्तव्य के प्रति समर्पण था।
आध्यात्मिकता कहती है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। यह वाक्य हमारे आंतरिक संसार की शक्ति को दर्शाता है। ध्यान और साधना के माध्यम से ऋषियों ने वह कर दिखाया है, जो सामान्य दृष्टि में असंभव प्रतीत होता था। पानी पर चलना, भविष्य दृष्टि, शरीर का त्याग और पुनः ग्रहण करना, इन सबका आधार उनका अटूट विश्वास और साधना ही थी। आज के युग में यदि हम वैज्ञानिक उपलब्धियों को देखें तो लगता है कि असंभव जैसी कोई चीज़ नहीं। राइट बंधुओं ने जब पहली बार उड़ान भरी तब दुनिया ने उनका उपहास उड़ाया, पर उन्होंने हार नहीं मानी। आज हम अंतरिक्ष में घर बनाने की बात कर रहे हैं।
भारत के चंद्रयान मिशन को ही देखिए, पहले प्रयास में असफलता मिली लेकिन इसरो ने हार नहीं मानी। दृढ़ इच्छाशक्ति और वैज्ञानिकों की तपस्या के बल पर भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलता का परचम लहराया। यह दिखाता है कि असंभव केवल मन की एक धुंध है, जिसे विश्वास की किरण से हटाया जा सकता है। हममें से हर व्यक्ति अपने जीवन में ऐसे मोड़ से गुजरता है जहां आगे का रास्ता धुंधला और कठिन लगता है। उस समय हमें यह याद रखना चाहिए कि समस्या बड़ी नहीं होती, अपितु हमारे भीतर का आत्मबल ही उसका हल है। यदि हम ठान लें कि रुकना नहीं है, तो हर कठिनाई झुकती है।
दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास और सतत प्रयास के सामने असंभव भी संभव बनता है। हमारे शास्त्रों, आध्यात्मिक विचारों और आधुनिक उपलब्धियों में यही साझा सूत्र है कुछ भी असंभव नहीं, यदि मनुष्य ठान ले।
घर को बनाएं शांति का कैलाश, डॉ. नीरज गजेंद्र






















