हिन्दू धर्म में सचमुच यह परंपरा है कि यदि परिवार में हाल ही में किसी सदस्य की मृत्यु हुई हो, तो उस वर्ष श्राद्ध/पितृ अर्पण करने की मनाही रहती है। इसका कारण यह है कि उस समय मृत आत्मा की एक वर्ष की अवधि (सौ पिंड दान, बारहवा, तेरहवीं आदि संस्कारों) के द्वारा मोक्ष और पितृलोक की यात्रा मानी जाती है। जब तक यह यात्रा पूर्ण न हो, तब तक पितृ पक्ष का श्राद्ध परंपरागत रूप से नहीं किया जाता।
👉 लेकिन इसके विकल्प (Alternate Options) बताए गए हैं:
तर्पण का विकल्प
यदि श्राद्ध विधि से संभव न हो, तो पितृपक्ष में केवल तर्पण किया जा सकता है।
तर्पण में जल, काला तिल और कुश लेकर सूर्य को अर्पण किया जाता है।
यह सरल विधि है और इसे निषिद्ध नहीं माना जाता।
दान-पुण्य
परिवार अनाज, वस्त्र, अन्नदान या गौ-दाना कर सकता है।
पितृ पक्ष में दान को भी श्राद्ध के बराबर फलदायी माना गया है।
पितृ स्तोत्र या मंत्र जप
पितृ स्तोत्र, विष्णु सहस्रनाम, गरुड़ पुराण या गीता पाठ करना उत्तम विकल्प है।
यह कार्य पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जा सकता है।
अन्नकूट / ब्राह्मण भोजन
अगर श्राद्ध न कर पाएं तो पितरों की स्मृति में ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराना भी श्रेष्ठ विकल्प है।
गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय जप
अगर परिवार सीधे विधि-विधान न करना चाहे, तो गायत्री मंत्र व महामृत्युंजय जप करने से भी पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
🕉️ संक्षेप में:
अगर परिवार में हाल ही में मृत्यु हुई है और उस वर्ष श्राद्ध करने की मनाही है, तो भी आप –
✅ जल-तर्पण
✅ दान-पुण्य
✅ पितृ स्तोत्र/गीता पाठ
✅ ब्राह्मण/गरीब भोजन
✅ मंत्र-जप
करके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं। इससे भी वही पुण्य फल प्राप्त होता है और पितृ दोष का भय नहीं रहता।
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