विद्यालय नहीं, मदिरालय में साहब! – कलेक्टर की ‘प्रशासनिक प्राथमिकता’ पर जनभावनाओं का तमाचा

कलेक्टर

दिलीप शर्मा. छत्तीसगढ़ बेमेतरा से एक “शानदार” ख़बर आई है… ऐसी खबर, जो बताती है कि बच्चों को शिक्षा की नहीं, बल्कि ‘शराब’ की सबसे ज्यादा ज़रूरत है। क्योंकि अब जब स्कूलों की छतें गिर रही हैं, शिक्षक गायब हैं, अस्पताल बदहाल हैं — तो कलेक्टर साहब की प्राथमिकता में क्या है? जी हाँ… वाइन शॉप का निरीक्षण।

सोचिए, पूरे जिले में स्कूल प्रवेश उत्सव चल रहा है, अधिकारी स्कूलों में बच्चों का स्वागत करते, खस्ताहाल भवनों का निरीक्षण करते, लेकिन नहीं! कलेक्टर साहब पहुंचे… ‘प्रीमियम वाइन शॉप’। इसे कहते हैं “ज़मीन से जुड़ा प्रशासन” – बस ज़मीन की बोतल के ढक्कन से जुड़ा हुआ।

कलेक्टर रणबीर शर्मा ने दुकान में जाकर ई-बिलिंग, रोशनी, स्टॉक रजिस्टर और ग्राहक की सुविधा पर चर्चा की। वाह साहब, अगर इसी जज्बे से स्कूलों की मरम्मत, शिक्षक की नियुक्ति और अस्पतालों की दवा उपलब्धता पर ध्यान देते तो शायद जनता शराब से नहीं, शिक्षा और इलाज से नशे में होती।

बेमेतरा में अब नई कहावत बन रही है –
“बच्चा स्कूल में गिर जाए तो चिंता मत करो, लेकिन वाइन शॉप का लाइट बंद न हो जाए!”


जनता के सवाल:

  • आत्मानंद स्कूल की छत गिरे सालभर हो गया, कोई अफसर नहीं पहुंचा।

  • सरकारी स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, लेकिन शराब दुकान में ग्राहक सेवा की समीक्षा हो रही है।

  • आवास योजना में भ्रष्टाचार के ऑडियो वायरल हुए, मगर साहब के कान शराब की बोतलों की झंकार में व्यस्त हैं।


पूर्व विधायक आशीष छाबड़ा का तंज भी काबिले तारीफ है:
“लोकेशन गलत, प्रशासन संवेदनहीन और सरकार शराबमय।”
छाबड़ा जी ने याद दिलाया कि दुकान कलेक्ट्रेट के सामने, कॉलेज के पास, बालिका विद्यालय के बगल में है – यानी शिक्षा के हर केंद्र के बीच, शराब का महा-केन्द्र। काश, शिक्षा की दुकान भी प्रीमियम होती, तो शायद कोई ‘निरीक्षण’ वहां भी होता।


निष्कर्ष:
शराब दुकान का निरीक्षण ‘प्रशासनिक जिम्मेदारी’ है, स्कूल निरीक्षण ‘जनता की उम्मीद’। फर्क सिर्फ इतना है कि प्रशासन अब जिम्मेदारी से नहीं, “ब्रांडेड प्राथमिकता” से चलता है।

शब्दों में व्यंग्य है, लेकिन हालात में विडंबना।
क्योंकि जब बच्चा गिरता है, तो उसे देखकर कुछ नहीं होता…
लेकिन शराब गिरे, तो कलेक्टर खुद दौड़ जाते हैं!

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