हम सभी अपने जीवन में स्थिरता की आकांक्षा रखते हैं। एक ऐसा जीवन जहां सब कुछ हमारी योजना और नियंत्रण में हो। लेकिन समय-समय पर ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ों पर लाकर खड़ा कर देती है, जहां सब कुछ अनियंत्रित, असहज और अनचाहा लगने लगता है। ये अनचाहे बदलाव हमारी सोच को झकझोरते हैं। लेकिन क्या वास्तव में ये बदलाव केवल अव्यवस्था लाते हैं या ये हमारे भीतर छिपे नवजीवन के बीज होते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं हे अर्जुन! सुख-दुख, सर्दी-गर्मी जैसे अनुभव क्षणिक हैं, वे आते-जाते रहते हैं। उन्हें सहन करना सीखो। यह उपदेश किसी भी प्रकार के मानसिक संकट या अनचाहे बदलाव को सहने और उनसे ऊपर उठने का जीवन-सिद्धांत है। प्रह्लाद की कथा इस संदर्भ में अत्यंत प्रेरक है। बाल्यकाल में ही उसे अपने पिता हिरण्यकश्यिपु के क्रूर अत्याचारों का सामना करना पड़ा। एक पुत्र के लिए पिता से विरोध करना कठिन होता है। यही परिवर्तन उसे प्रह्लाद से भगवद्भक्त प्रह्लाद बना गया। जिसकी स्तुति आज तक होती है।
इसी तरह कुंती, जो राजमहल की रानी थीं, महाभारत के संघर्षों के चलते जीवन भर विपत्तियों में रहीं। लेकिन उन्होंने हर अनचाही परिस्थिति को ईश्वर की कृपा मानकर सहा। श्रीमद्भागवत में उनका एक अद्भुत वाक्य है विपदः सन्तु नः शश्वत् तत्र तत्र जगत्गुरो। अर्थात हे प्रभु! मुझे बार-बार विपत्तियां दीजिए ताकि मैं बार-बार आपको याद कर सकूं। यह स्वीकार्यता ही उनके चरित्र की महानता को दर्शाती है।
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान
मनुष्य का मस्तिष्क बदलाव का विरोधी होता है, क्योंकि वह स्थायित्व चाहता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि जब व्यक्ति की दिनचर्या अचानक बदलती है, जैसे नौकरी छूटना, स्थानांतरण, तलाक या किसी प्रिय की मृत्यु, तो मस्तिष्क loss mode में चला जाता है। बावजूद इसके जिन व्यक्तियों ने इन परिवर्तनों को आत्मस्वीकृति और धैर्य से लिया, वे बहुत जल्दी ही पहले से अधिक संतुलित, रचनात्मक और सशक्त होकर उभरे।
हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को ही लीजिएवे वायुसेना में पायलट बनना चाहते थे, पर अंतिम चरण में असफल हो गए। यह उनके लिए एक गहरा व्यक्तिगत आघात था। परंतु उसी बदलाव ने उन्हें विज्ञान और अंततः भारत के मिसाइल मैन बनने की राह पर अग्रसर किया।
इनोवेटिव रहे स्टार्टअप
स तरह 2008 की आर्थिक मंदी ने लाखों लोगों की नौकरी छीनी, लेकिन उबर, एयरबीएनबी जैसे इनोवेटिव स्टार्टअप्स इसी कालखंड में जन्मे और संकट से नवाचार की उत्पत्ति हुई। बुद्ध दर्शन में कहा गया है कि अनित्यं अनित्यं सर्वं अनित्यं यानि सब कुछ क्षणभंगुर है। वास्तव में यदि हम इस सत्य को आत्मसात कर लें तो बदलाव हमें भयभीत नहीं करते, बल्कि हमारे भीतर लचीलापन विकसित करते हैं।
इसी पर रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे जैसे सीप को दर्द झेलकर मोती बनाना आता है, वैसे ही मनुष्य को भी भीतर का मोती गढ़ने के लिए बदलावों की पीड़ा से गुजरना होता है। आज के दौर में भी यदि देखा जाए तो कोविड-19 महामारी एक ऐसा वैश्विक अनचाहा परिवर्तन था जिसने सब कुछ अस्त-व्यस्त कर दिया। लेकिन इसी ने वर्क फ्रॉम होम, डिजिटल शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता जैसे नए रास्ते खोले।
चेतना का प्रवेश द्वार
बदलाव चाहे जितना भी अनचाहा लगे, वह जीवन के विकास का स्वाभाविक चरण है। यदि हम उसे नकारते हैं, तो हम अपने ही जीवन को ठहरा देते हैं। गहराई से देखें तो हर बदलाव एक नई चेतना का प्रवेश द्वार है। आज का मनुष्य तेज़ी से बदलती दुनिया में रह रहा है जहां तकनीक, विचारधाराएं, रिश्ते और भूमिकाएं निरंतर बदल रही हैं। ऐसे में परिवर्तन को भय नहीं, बल्कि संधि मानना चाहिए। उस पुल की तरह जो आपको एक नए, अधिक परिपक्व जीवन की ओर ले जा रहा है।
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