पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र किस महान हस्ती को बता रहे हैं ज्ञान की परंपरा और जीवन का सार

गुरु पूर्णिमा
डॉ. नीरज गजेंद्र
Dr. Neeraj Gajendra

आज का दिन बहुत विशेष है। आज गुरु पूर्णिमा है। वह पर्व, जब हम नतमस्तक होते हैं उन महान आत्माओं के सामने, जिन्होंने हमें अक्षर सीखाने के साथ जीवन को जीने की दृष्टि दी। गुरु का अर्थ है जो अज्ञान के अंधेरे को दूर कर ज्ञान की रौशनी फैलाता है, वही गुरु है। हमारे शास्त्रों में गुरु को ईश्वर से भी ऊपर का स्थान दिया गया है। कहा गया है गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ यह श्लोक भारतीय संस्कृति की आत्मा है। गुरु केवल शिक्षा नहीं देता, वह संस्कार देता है, चरित्र गढ़ता है और एक जिम्मेदार इंसान बनाता है। आइए, इस विशेष दिन पर हम अपने व्यक्तिगत गुरु के साथ उस समूची भारतीय ज्ञान परंपरा को भी नमन करें, जिसने समूचे विश्व को सांस्कृतिक, बौद्धिक और वैज्ञानिक रूप से महान बनाया। क्या आप जानते हैं कि आज जो हम विज्ञान, तकनीक, भाषा, चिकित्सा, कला और दर्शन में देखते हैं, उसकी नींव हमारे इन्हीं महान गुरुओं ने रखी थी। हमारी भारतीय परंपरा में ऐसे-ऐसे गुरु हुए हैं, जिन्होंने पूरे विश्व को चौंका दिया।

गणित के गुरु आर्यभट ने जब शून्य दिया, तो दुनिया की गिनती ही बदल गई। उन्होंने शून्य की खोज करके भारत के साथ पूरी दुनिया की गणना-पद्धति को एक नई दिशा दी। उनका आर्यभटीय ग्रंथ गणित, खगोल और ज्योतिष की दिशा में अद्वितीय है। व्याकरण शास्त्र के जनक पाणिनि ने अष्टाध्यायी जैसा अद्भुत ग्रंथ रचकर संस्कृत को एक व्यवस्थित, वैज्ञानिक और कालातीत भाषा बना दिया। आज भी उनकी रचना भाषा शास्त्रियों के लिए एक चमत्कार है। आयुर्वेद के गुरु महर्षि चरक ने चरक संहिता के माध्यम से चिकित्सा और जीवन शैली का ऐसा ज्ञान दिया, जो आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं को आयुर्वेद का मूल मंत्र बताया, जिसमें इलाज नहीं, स्वास्थ्य का दर्शन है। महाभारत के रचनाकार वेदव्यास ने इस महाग्रंथ की रचना के साथ ही वेदों को विभाजित कर उन्हें संरचित किया। उनका योगदान इतना विराट है कि उन्हीं की स्मृति में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।

योग शास्त्र के गुरु पतंजलि ने योग को जीवन का विज्ञान बना दिया। उनका योग सूत्र आज विश्व भर में लोगों को मानसिक शांति और संतुलन का मार्ग दिखा रहा है। अद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक आदि शंकराचार्य ने वेदों की व्याख्या करके भारतीय दर्शन को एक अद्वितीय ऊंचाई दी। उन्होंने देश के चारों कोनों में मठ स्थापित कर ज्ञान का दीप जलाया। ज्योतिष के आचार्य महर्षि पराशर ने बृहत पराशर होरा शास्त्र जैसे ग्रंथों से खगोल और भविष्यवाणी की विद्या को जन-जन तक पहुंचाया। नाट्यशास्त्र के रचयिता भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र के माध्यम से कला, रंगमंच और अभिनय की बुनियाद रखी। उनका रचा रस सिद्धांत आज भी भारतीय कला में आत्मा की तरह काम करता है। इन सभी गुरुओं की उपलब्धियां अलग-अलग क्षेत्रों में हैं, लेकिन उद्देश्य एक ही था मनुष्य को पूर्ण बनाना, उसके जीवन को सार्थक बनाना।

और फिर आते हैं भगवान श्रीकृष्ण, एक ऐसा गुरु जो युद्ध में खड़ा होकर अपने शिष्य को धर्म, कर्म, आत्मा, मोक्ष और कर्तव्य के रहस्य समझा रहा है। जो कह रहा है  कि तूम सिर्फ कर्म करो और फल मुझ पर छोड़ दो। जो यह भी कह रहा है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु मनुष्य का अपना मन ही है, और सबसे बड़ा मित्र भी वही है। गुरु, जिनके लिए कहा जाता है कृष्णं वंदे जगत्गुरुम्। वे हर स्थिति में जीवन की सच्ची सीख देने वाले मार्गदर्शक थे।

भारतीय संस्कृति में शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं रही, यह एक संस्कार रही है। प्राचीन काल में गुरुकुल प्रणाली में गुरु के सानिध्य में शिष्य जीवन के हर पक्ष का अध्ययन करता था। वह केवल विद्वान नहीं, जिम्मेदार और चरित्रवान नागरिक बनाता था। शिष्य गुरुओं से केवल पाठ नहीं, जीवन जीने की कला सीखते थे। राम को गुरु वशिष्ठ मिले, कृष्ण को गुरु सांदीपनि, शिवाजी को समर्थ गुरु रामदास और विवेकानंद को श्री रामकृष्ण परमहंस। इन संबंधों ने इतिहास रचने के साथ ही समाज की दिशा भी सुनिश्चित की।

आज के दौर में हम ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, डिजिटल नोट्स, यूट्यूब ट्यूटोरियल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स से ज्ञान पा रहे हैं। यह सब ठीक है, लेकिन क्या यह गुरु की जगह ले सकता है। गूगल ज्ञान दे सकता है, लेकिन विवेक नहीं। बुक्स फैक्ट्स बता सकती हैं, लेकिन जीवन जीने का तरीका नहीं वह तो सिर्फ गुरु ही बता सकता है। वास्तव में गुरु वही होता है जो शिष्य को दिमाग के साथ आत्मा से जोड़ता है। आज हम एक ऐसे दौर में हैं जहां ज्ञान के साधन तो बढ़ गए हैं, पर संस्कार और दिशा देने वाले गुरुओं की कमी महसूस होती है। गुरु सिर्फ वह नहीं जो पढ़ाता है, वह भी है जो जीवन के हर मोड़ पर साथ खड़ा रहता है। कभी डांटकर, कभी समझाकर और कभी मौन रहकर हमें हमारी असली पहचान से मिलवाता है।

आइए, इस गुरु पूर्णिमा पर हम अपने गुरु के साथ उस पूरी भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रणाम करें, जो हमें बताती है कि गुरु बिना ज्ञान नहीं, और ज्ञान बिना जीवन नहीं। संकल्प लें कि हम अपने जीवन में गुरु की पहचान बनाएंगे, उनकी बातों को सुनने के साथ जिएंगे और यदि कभी अवसर मिले, तो स्वयं भी किसी के लिए गुरु बनकर ज्ञान का दीप दूसरों को रोशन करने के लिए जलाएंगे। सभी गुरुओं को शत् शत् नमन और आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।

ब्रह्मकाल और ब्रह्मचर्य से मिलने वाले जीवन के उच्चतम शिखर पर पढ़िए पत्रकार डॉ नीरज गजेंद्र का दृष्टिकोण

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