दोराहे पर ऐसा क्या करें जिससे मिलेगी सपनों की मंजिल, बता रहे वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र

जिंदगीनामा

ज्यादातर युवाओं से अक्सर यह पूछा जाता है, कि आगे क्या करेगा। किस क्षेत्र को अपना करियर बनाएगा। अधिकांश युवा इसका स्पष्ट जवाब नहीं दे पाते। अस्पष्टता का मूल कारण कैरियर की धुंध होती है। इसी कारण छात्र-छात्राएं सपनों की मंजिल के बजाए उस रास्ते पर चल पड़ते हैं जिसमें सब चल रहे होते हैं, या मां-बाप की इच्छा होती है। आशय यह कि आजकल सब इंजीनियरिंग कर रहे हैं तो मैं भी यही कर रहा हूं। मां-बाप डाक्टर बनाना चाहते हैं इसलिए मेडिकल में प्रवेश ले लिया है। कोई आर्ट्स की पढ़ाई कर रहा होता है, लेकिन मन किसी दूसरे सब्जेक्ट में बसा होता है। दरअसल, युवा अपने सपनों का मंज़िल वाला रास्ता ढूंढने के बजाए जिधर सब जा रहे होते हैं उधर चल पड़ते हैं। सफर की लंबी दूरी तय करने के बाद उन्हें पता चलता है कि यह तो उनका रास्ता है ही नहीं।

अब जरा सोचिए। अगर आप किसी और की मंज़िल को अपना मान लें, तो क्या आप वहां पहुंचकर खुश रहेंगे। साफ बात है,नहीं.. बिलकुल नहीं, पर इसका समाधान क्या है। सफल लोगों की लाइफ हिस्ट्री बताती है कि उन्होंने कैरियर के सफर पर चलने से पहले खुद से यह पूछा था कि जिस रास्ते के मुहाने पर वह खड़ा है, वह उसकी मंजिल को जाता है या नहीं। आशय यह कि रास्ते पर चलने से पहले परख लें, कि यह आपको किधर पहुंचाएगा। सक्सेस लोग अपनी बायोग्राफी में कह चुके हैं कि मंजिल की ओर बढ़ने से पहले उन्होंने दो राहे पर खड़ा होकर खुद से पूछा था और जिस रास्ते की ओर देखते-सोचते ही दिल तेजी से धड़कने लगा उसे वे अपना रास्ता मानकर आगे बढ़ गए और उसपर उन्हें सपनों की वह मंजिल मिल गई।

कई लोग हैं जिन्होंने भीड़ वाले रास्ते पर चलना शुरू किया और जब पता चला तो उसे छोडकर रास्ता बदला और सपनों की मंजिल को हासिल किया। ऐसे ही कुछ शख्सियत हैं जिनमें अपूर्वा जोशी का नाम आता है। वे एक जानी-मानी पत्रकार हैं। उन्होंने कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की थी, इसी दौरान उन्हें रिपोर्टिंग का चस्का लगा। एक कम उम्र वाले अखबार से शुरुआत करते हुए पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की, और आज देश के बड़े चैनल पर काम कर रही हैं। ऐसे ही मनोज पांडे की कहानी है। सीए की तैयारी में थे। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन मन नहीं लग रहा था। उन्हें कहानियां लिखना अच्छा लगता था। एक दिन तय किया अब वही करूंगा। आज उनके तीन उपन्यास छप चुके हैं। वे अपनी दुनिया में खुश हैं। नमिता शर्मा ने एमबीबीएस के बाद डिजाइनिंग चुनी। सब हैरान रह गए, लेकिन वो जानती थी कि वो क्या चाहती हैं। आज उनके डिजाइन पेरिस तक जा चुके हैं।

इन सभी में एक बात कॉमन है। उन्होंने खुद को पहचाना। किसी और की उम्मीदों के बोझ से आजाद होकर अपने रास्ते चले और सबसे बड़ी बात उन्हें डर नहीं लगा। अक्सर युवा सोचते हैं, अगर गलत रास्ता चुन लिया तो… फिर एक ही जवाब है, तब भी सीख मिलेगी। रास्ता बदलिए, मंजिल नहीं, लेकिन किसी और की मंजिल को अपना बनाएंगे तो फिर सारी मेहनत बेकार जाएगी और खुद को कोसते रहेंगे कि मैं चलने से पहले रास्ते की पहचान कर लेता तो मुझे अपनी मंजिल मिल जाती। इसलिए पहले ये साफ करें कि आपका मन किसमें लगता है। अगर जवाब नहीं मिल रहा तो थोड़ा रुकिए। खुद से बात कीजिए। कुछ नया ट्राई कीजिए। इंटर्नशिप करें। वर्कशॉप करें। धीरे-धीरे धुंध छंट जाएगा और आपको सपनों की मंजिल का रास्ता मिल जाएगा। याद रखिए, जो लोग अपने दिल की सुनते हैं, उन्हें उनकी मंजिल जरूर मिलती है।

दृढ़ निश्चय से कैसे बदलती है असंभव की परिभाषा, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार डॉ नीरज गजेंद्र, पढ़िए यहां

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