लेखक: [दिलीप शर्मा] | 22 जून 2025 | रायपुर छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में एक विचित्र, लेकिन गहरे सामाजिक संकेत देने वाला दृश्य सामने आया जब एक पोल्ट्री वाहन सड़क पर पलट गया, और उस पर सवार मुर्गियां इधर-उधर बिखर गईं। ड्राइवर अंदर जख्मी पड़ा हुआ था, लेकिन उसकी मदद करने के बजाय आसपास के लोग उस गाड़ी पर भूखे गिद्धों की तरह टूट पड़े — लेकिन न शव पर, बल्कि ज़िंदा मुर्गियों पर।
लोगों ने अपने थैले, झोले, बाइक की डिक्कियाँ और शायद जेबें भी भर लीं, लेकिन इंसानियत खाली हाथ लौट गई।
🧠 अंदर का अपराधी, बाहर की नैतिकता
यह घटना केवल एक लूट नहीं थी। यह एक सामूहिक नैतिक परीक्षा थी, जिसमें हम सब बुरी तरह फेल हो गए। लोग आम तौर पर शरीफ माने जाते हैं — समाज में सम्मानित, अपने बच्चों को संस्कार सिखाते — लेकिन एक मौका मिला, और भीतर बैठा अपराधी छलांग मारकर बाहर आ गया।
दरअसल, हम शरीफ इसलिए हैं क्योंकि हमें जुर्म करने का मौका नहीं मिला है, या फिर सामाजिक निगरानी (CCTV, पुलिस, पड़ोसी) ने हमें काबू में रखा है।
“लोग ताले चोरों से नहीं, शरीफों से बचाव के लिए लगाते हैं — क्योंकि शरीफों को बस मौका चाहिए।”
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💸 25 हजार का इनाम बनाम 200 की मुर्गी
कल ही भारत सरकार ने ऐलान किया कि कोई भी व्यक्ति यदि किसी सड़क हादसे में घायल को अस्पताल पहुंचाता है, तो उसे ₹25,000 का ईनाम मिलेगा। लेकिन बेमेतरा के लोग अगर यह खबर एक दिन पहले पढ़ चुके होते, तो शायद 200-300 रुपये की मुर्गी की बजाय ड्राइवर को उठाकर अस्पताल पहुंचाते — और उसके बाद मुर्गी पार्टी में पनीर टिक्का और बिरयानी भी शामिल हो जाती।
यह घटना बताती है कि अब इंसानियत को ईनाम देकर उधार में नहीं, नकद में प्रोत्साहित करना होगा।
🧪 मुर्गी, पेट्रोल, केमिकल और इंसान
बेमेतरा की यह घटना कोई अपवाद नहीं है। इससे पहले भी पूरे देश में हमने देखा है कि:
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पेट्रोल टैंकर पलटते ही लोग खाली डिब्बों के साथ लूट में लग जाते हैं
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केमिकल टैंकर से जहरीले रसायन भी लोग बिना समझे भर लेते हैं, और फिर झुलस जाते हैं
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किसी जख्मी को छोड़कर सेल्फी या वीडियो बनाना ज्यादा जरूरी हो जाता है
इन घटनाओं का एक ही संदेश है: हमारा सामाजिक अनुशासन सिर्फ कैमरे और कानून के डर से है, आत्मा की संवेदना से नहीं।
🔚 निष्कर्ष: समाज की रीढ़ नहीं, रीढ़हीनता का आईना
इस एक हादसे ने हमें हमारी छिपी हुई अमानवीयता का आईना दिखाया है। यह तय करना अब जरूरी हो गया है कि हम किस ओर जा रहे हैं —
कहीं ऐसा न हो कि अगली बार जब हम मुर्गी की जगह इंसान लूटने लगें, तब भी हमें शर्म नहीं आए