आज अपरा एकादशी : सनातन धर्म में ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का अपरा एकादशी कहते हैं. वैदिक पंचांग के मुताबिक इस साल अपरा एकादशी का व्रत आज 23 मई 2025, शुक्रवार को है। आज दिन उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र और प्रीति योग का संयोग रहेगा। दिन के शुभ मुहूर्त की बात करें तो शुक्रवार को अभिजीत मुहूर्त 11:44 − 12:37 रहेगा। राहुकाल 10:32 − 12:10 मिनट तक रहेगा। चंद्रमा मीन राशि में संचरण करेंगे।
तिथि एकादशी 22:26 तक
नक्षत्र उत्तरभाद्रपदा 15:49 तक
प्रथम करण बावा 11:51 तक
द्वितीय करण बालवा 22:26 तक
पक्ष कृष्ण
वार शुक्रवार
योग प्रीति 18:31 तक
सूर्योदय 05:35
सूर्यास्त 18:45
चंद्रमा मीन
राहुकाल 10:32 − 12:10
विक्रमी संवत् 2082
शक संवत 1947 विश्वावसु
मास ज्येष्ठ
शुभ मुहूर्त अभिजीत 11:44 − 12:37
अपरा एकादशी व्रत कथा
एक बार भगवान श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर ने कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का महत्व बताने का निवेदन किया. तब उन्होंने कहा कि इस एकादशी को अपला एकादशी कहते हैं और इससे ब्रह्म हत्या, प्रेत योनि आदि से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही कथा सुनाते हुए कहा कि एक समय एक राज्य में महीध्वज नाम का राजा राज्य करता था. उसका एक छोटा भाई भी था, जिसका नाम था व्रजध्वज. वो बेहद अधर्मी और पापी था. वह अन्याय के मार्ग पर चलने वाला और अपने भाई महीध्वज से द्वेष करने वाला था.
एक बार उसने अपने भाई के खिलाफ षड्यंत्र रचा और उसकी हत्या कर दी. हत्या के बाद अपने भाई का शव जंगल में ले गया और पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया. चूंकि राजा महीध्वज की अकाल मृत्यु हुई थी इसके कारण उन्हें प्रेत योनि में जाना पड़ा और वह प्रेत आत्मा बनकर पीपल के पेड़ पर ही रहने लगे. प्रेतात्मा बनने के बाद राजा वहां पर उत्पात मचाने लगा तब 1 दिन उस पीपल के पेड़ के सामने से धौम्य ऋषि गुजर रहे थे. तब उन्होंने उस प्रेत को पीपल के पेड़ पर देखा और वह उसे देखते ही समझ गए कि यह तो वह राजा है. तब उन्होंने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पेड़ से नीचे उतारा और उसे परलोक विद्या के बारे में बताया.
उन्होंने उस प्रेतात्मा राजाओं को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए खुद एकादशीे का व्रत रखा और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की. उन्होंने भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करके यह मांगा कि उस प्रेतात्मा राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाए. भगवान विष्णु धौम्य ऋषि की पूजा से प्रसन्न हुए और प्रेतात्मा राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई. उसके बाद राजा ने दिव्य शरीर धारण कर धौम्य ऋषि को प्रणाम किया और पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग में चला गया.
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